यह पुस्तक भारतीय दर्शन और हिंदुत्व की गहरी परंपराओं का एक समग्र अध्ययन प्रस्तुत करती है। चार भागों में विभाजित, यह पुस्तक सनातन धर्म के दार्शनिक आधार, हिंदुत्व की सामाजिक भूमिका, और इन दोनों के समन्वय को रेखांकित करती है।
सनातन धर्म के सिद्धांतों और भारतीय दर्शन की धाराओं की व्याख्या।
हिंदुत्व की उत्पत्ति, ऐतिहासिक विकास, और सामाजिक योगदान।
धर्म, राष्ट्रवाद, और समकालीन चुनौतियों के संदर्भ में इन विचारधाराओं की प्रासंगिकता।
नई पीढ़ी और वैश्विक संदर्भ में सनातन और हिंदुत्व का भविष्य।
यह पुस्तक केवल ज्ञान का स्रोत नहीं है, बल्कि यह आत्मचिंतन और समाज सुधार का मार्गदर्शक भी है।
रमेश चौहान विगत 30 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं। पिछले 15 वर्षों से वे शैक्षणिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक लेखन में विशेष योगदान दे रहे हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल हैं:
अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग
एकादशोपनिषद प्रसाद
मनुस्मृति: मानव का आचार संहिता
रासपंचाध्यायी
सनातन सत्व
उनकी लेखनी भारतीय दर्शन और संस्कृति की गहरी समझ और आध्यात्मिक चिंतन का परिणाम है। उनके कार्यों ने हजारों पाठकों को प्रेरित किया है।