(जन्म - 5 मई 1935)
आबिद सुरती चित्रकार हैं, कार्टूनिस्ट हैं, व्यंग्यकार हैं, उपन्यासकार हैं, घुमक्कड़ हैं, फक्कड़ हैं–और वे कहानीकार भी हैं। विभिन्न कलाविधाएँ उनके लिए कला और ज़िन्दगी के ढर्रे को तोड़ने के माध्यम हैं। उनकी ये कोशिशें जितनी उनके चित्रों में नज़र आती हैं, उससे अधिक नहीं तो कम-अज़-कम उतनी ही उनकी कहानियों में भी नज़र आती हैं। स्वभाव से यथार्थवादी होते हुए भी वे अपनी कहानियों में मानव-मन की उड़ानों को शब्दांकित करते हैं। जीवन की सच्चाई से वे सीधे साक्षात्कार न करके फंतासी और काल्पनिकता का सहारा लेते हैं। व्यंग्य का पैनापन इसी से आता है, क्योंकि यथार्थ से फंतासी की टकराहट से जो तल्ख़ी पैदा होती है, उसका प्रभाव सपाट सच्चाई के प्रभाव से कहीं ज्यादा तीखा होता है। एक सचेत-सजग कलाकार की तरह आबिद अपनी कहानियों में सदियों से चली आ रही जड़-रूढ़ियों, परंपराओं और ज़िंदगी की क़ीमतों पर लगातार प्रश्नचिह्न लगाते हैं और उन्हें तोड़ने के लिए भरपूर वार भी करते हैं। यह बात उन्हें कलाकारों की पंक्ति में ला खड़ा करती है, जो कला को महज़ कला नहीं, ज़िन्दगी की बेहतरी के माध्यम के रूप में जानते हैं। सबसे बड़ी ख़ूबी यह है कि आबिद के भीतर अब भी एक जिज्ञासु बालक मौजूद है, जो हर चीज़ पर क्या, क्यों, कैसे जैसे प्रश्नचिह्न लगाता रहता है। यही वजह है कि उनकी रचनाएँ जहाँ हमें आंदोलित और उद्वेलित करती हैं, वहीं हमारा बौद्धिक मनोरंजन भी करती हैं। विचार और रोचकता का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण बहुत कम रचनाकारों में नजर आता है–और जिनमें नज़र आता है, वे प्रथम पंक्ति के रचनाकार हैं।