आज सुबह खिड़की पर चाय का प्याला लिए बैठी थी पीछे मुड़कर देखा तो वह खड़ी थी पता है कौन? ज़िंदगी मैंने पूछा -कैसे आना हुआ? वह बोली- तुम तो याद करती नहीं सोचा मैं ही आ जाऊँ मैंने कहा -अभी बहुत काम में हूं ,बाद में आना मेरी यह बात सुनकर वह धीरे से बोली जो रुक गई मैं तो क्या चल पाओगी तुम? तो बस ज़िंदगी से मुलाक़ात हुयी ,उसका हाथ थामा और उसने मुझमे नए रंग भर दिए जिन्हें मैं आपसे साझा कर रही हूँ।