विषय: हलत ए नमाज़ में इमाम को लुकमा देना।
दुआन ए नमाज़ अगर इमाम को उसके वूल जाने पर आयत याद कारा दे जाए तो ये अमल नमाज़ को फ़सीद (बतिल, करब) नहीं करता है ऐसा करना जायज़ है ' और अगर उपयोगकर्ता कोई वजेह डालिल ना हो तब वी हम के लिए काफ़ी है।
नमाज माई लुकमा देने के मसाइल इस किताब माई आपको बहुत से मिलेंगे जो हम सब को मालुम होना जरूरी है इसे डाउनलोड करें या ज्यादा से ज्यादा शेयर करें
तहरीर : शेख मकबूल अहमद सलाफी हाफिजउल्लाह
नमाज़ के दौर अगर इमाम क़िरत भूल गए या हम पे क़िरत मुश्ताबह हो जाये (यानी वो कन्फ्यूज़्ड हो जाये) तो पेशाब नमाज़ को लुकमा देना (यानी परहते वक़्त अगर इमाम क़ुरान में कुछ भूल गए तो इस्तेमाल करेंगे) नफ्ल. सुन्नत से की बहुत सारी चीज़ें मिलती हैं। कुछ एक नीच बयान की जा रही है।
पहली दलील: मुसव्वर बिन यज़ीद मलिकी रधिअल्लाहु अन्हु से रिवायत है:
मैं
तर्जुमः मैं रसूलअल्लाह सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़ में क़िरत फरमाई (यानी क़ुरान परहा) और हम से कुछ आयत छुट गेइन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अलैहि वसल्लम अलैहि वसल्लम अलैहि वसल्लम अलैहि वसल्लम बाद) कहा: ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आप ने फलन फलन आयत चोर दी है। इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया के तू ने मुझे याद किया कि न दिलाया।
(अबू दाऊद: 907, क्या हदीस को अल्लामा अल्बानी रहीमहुल्लाह ने हसन कहा है)
दूसरी दलील: अब्दुल्ला बिन उमर रदियाल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है:
तर्जुमः रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़ परहा रहे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर क़िरत मुश्तबा हो गई (यानी भूल गए या फिर पीछे हो गए।) जब नमाज़ से दूर हुए तो हज़रत उबै बिन काब (हाफ़िज़ ए क़ुरान) को फ़र्माया के तू ने मेरे साथ नमाज़ परी है? जवाब दिया के हां! आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया फिर तुझे किस चीज ने (लुकमा देने से) मन किया।
(अबू दाऊद: 907 बी, हदीस को शेख अल्बानी, अल्लामा शौकानी और इमाम नवावी रहीमहुमुल्लाह ने सही कहा है)
पहली हदीस इमाम के क़िरत भूलने से मुतालिक है और दूसरी हदीस क़िरत के मुश्तबाह (यानी क़िरत में भ्रम) से मुतालिक है।
तीसरी दलील:
َنْ َنَسٍ : نَّا نَفْتَحَ َلَى الْأَئِمَّةِ عَلَى َهْدِ رَسَولِ اللَّهِ َلَّى اللَّهَ َلَيْهِ وَسلَّمَ
तर्जुमः हज़रत अनस रदियाल्लाहु अन्हु से रिवायत है वो फार्मते हैं की हम लोग रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने में इमामों को लुकमा दिया करते हैं।
(मुस्तद्रक हकीम, किताब उस सलात, जिल्ड: 1 पेज नं: 410। इमाम हकीम रहीमहुल्लाह ने इसे सही कहा है। और इमाम ज़हबी रहिमहुल्लाह ने उनकी मुवाफ़िक़त की है)
◈ अल्लामा शौकानी रहीमउल्लाह लिखते हैं: हदीस की सनद के रिजाल सिकात है।
(कील उल अवतार: 2/379)
चौथी दलील:
َنْ َبِي َبْدِ الرَّحْمَنِ السَّلَمِيِّ َالَ : َالَ عَلِيٌّ : َا اسْتَطْعَمَكَ الْإِمَامَ َأَطْعِمْه
तारजुमाः अबु अब्दुर्रहमान सुलामी से रिवायत है के हज़रत अली रदियाल्लाहु अन्हु ने फरमाया: ऐ अबू अब्दुलरहमान! अगर इमाम तुझ से लुकमा का तालिब हो तो लुकमा दे।
(बैहाकी)
हाफिज इब्न ए हजार रहीमहुल्लाह ने अबू अब्दुर्रहमान सुलामी की रिवायत को सही करार दिया है।
(तलखीस उल हबीर : 1/284)
इन अहदीस और आसर के अलावा इमाम के भूलने पर «سَبْحَانَ اللَّهِ» कहने वाली हदीस भी दलील है। इसी तरह से बुखारी और मुस्लिम की रिवायत है के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बार जोहर या असर की नमाज में भूल गए और दो ही रकात पर सलाम फेर दिया। साहब के याद दिलाने पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर से दो रकात परी और सजदा ए साहू किया।
लोगों में जो ये मश-हूर (प्रसिद्ध) हो गया है के मुक्तादी इमाम को लुकमा नहीं दे सकता या तीन (3) आयत के बाद अगर इमाम भूल जाए तो लुकमा नहीं देना चाहिए, ये सब सही नहीं है।
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पिछली बार अपडेट होने की तारीख
14 मार्च 2022