ज़कात देना उतना ही ज़रूरी है जितना नमाज़ के लिए वशीकरण करना।
जो प्रार्थना बिना वशीकरण के की जाएगी वह जाहिर तौर पर प्रार्थना होगी लेकिन आत्मा के बिना। ऐसी प्रार्थना से हमारे कर्मों और चरित्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और इसके लिए परलोक में प्रतिफल की आशा करना व्यर्थ है।
इसी तरह ज़कात के बिना जो अभ्यास और लाभ अनुभव होंगे, वे निष्प्राण हैं, उनका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं होगा। सफलता मिल भी जाए तो यह महज एक इत्तेफाक है, अल्लाह की रहमत के सिवा कुछ नहीं।
भगवान की दया और कृपा का कोई सूत्र नहीं है।
लेकिन जो लोग व्यावहारिक लाभ में रुचि रखते हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि व्यावहारिक लाभ और लाभ प्राप्त करने के लिए ज़कात का भुगतान करना बहुत महत्वपूर्ण है।
यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि विलेख के लिए भुगतान की जाने वाली ज़कात को शरीयत का दर्जा नहीं है, यह काम को मजबूत करने के लिए है। चिकित्सकों, पूर्णतावादियों और शोधकर्ताओं ने विभिन्न प्रकार के जकात और उनके विभिन्न प्रभावों का वर्णन किया है।
पिछली बार अपडेट होने की तारीख
9 सित॰ 2024