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जाषा ज्ञान केास में व्याकरण तथा कोशा महत्व पूर्ण स्थान है। किसी भी भाषा द्वारा विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए शब्द सम्पदा की आवश्यकता होती है। शब्द ज्ञान के अनन्तर उसे नियमन के लिए व्याकरण की आवश्यकता होती है। संस्कृत जैसी संश्लिष्ट भाषा का सर्वांगपूर्ण कोश्रन्थ तैयार करना जटिल कार्य होता है। ँाँ एक प्रकृति तथा प्रत्यय के योग से शब्दों का सृजना जाता है। धातुओं में उपसर्गों के योग से थर्थ परिवर्तन पूर्वक अनेक्रियावाची शब्द बनते हैं। अंग्रेजी या हिन्दी भाषा केर संस्कृत मेंाध (क्रकाओं) का नियमना कोशा कोशर्माण चुनौती पूर्ण है।
संस्कृत के अमरकोश, मेदिनीकोश, हलायुध कोश आदि कोश ग्रन्थों में विषयानुसार प्रातिपदिकों केर्पाय तथा उसके निरदेशनि मिलतेाउपलबतुवृत तुवृततितुवृततुवृतति अभी तक वाक्य निर्माण के लिए आवश्यक दोनों्रकार की द्दावली से युक्त ई- कोश का अभाव था। हिन्दी भाषियों केार्थ मैंने अपने इस कोश में दी्दी भाषा में्रचलन में आये अंग्रेजी, उर्दू, फारसी तथा देशज दों्दों तथा क्रियाओं के संस्कृत शब्दों का संकलन किय एवं यह हिन्दी शब्दों का संस्कृत शब्द बताने वाला हिन्दी संस्कृत शब्दकोश है।
लिंगानुशासन के विना कोशरा रहता है। संस्कृत में शब्दों के लिंग होते हैं। रूप भेद, साहचर्य, लिंग कथन आदि द्वारा संस्कृत शब्दों का लिंगरिज्ञान कराया जाता रहा है। मैंने भीामान्यतः विसर्ग के व्वारा पुल्लिंग, आकारान्त तथा ईकारान्त के्वारा स्त्रीलिंग एवं मकारान्त के व्वारा नपुंसक लिंग का बोध क सामान्य नियमाब होने की स्थिति थिति दों्दों केर्व लिंग कथन कर दिया गया है। भाषित पुंस्क (कुछ नपुंसक लिंग के शब्द पुल्लिंग में भी होते हैं) के लिए (पुं.नं.) इस प्रकार संकेता गया है।
संस्कृत में क्रियाओं को 10 गणों मेंाविभ किया गया है। कतिपय समरूप धातु अनेक गणों में पठित हैं इन परिवर्तित स्वरूप सेाध तथा उसकेर्अ को बोध नेरने के लिए मैंने उनकेर्तमान काल, प्रथमा एकवचन का शब्द लिखा है। इसपकँधयहधयहधधधधधधँँधधधँधधँधधधधधँधधधधधधँधधधँँधधधँधधधधँधध कोदियथँध कुछ उपसर्गों के साथ धातुओं के योग से निष्पन्न पदों को भी रखा है। कोश में शब्दों का क्रम आदिवर्ण के अनुसार है। जहाँ आवश्यकता हुई, वहाँ अनेकर्याय शब्द भी दिये गये हैं।
यह कोश संस्कृत भाषा के्रारम्भिक शिक्षण में उपयोगी है अतः यह्रप्प एक षर्व से अधिक समय से्बित था, लॉकडाउन की अवधिा अवधिा कर इसे पूर्ण किया गया। कोश निर्माण में सुश्री श्वेता गुप्ता, लखनऊ ने बराबर का सहयोग दिया है। तन्त्रांश के व्वारा इसे जनोपयोगी बनाने हा हर मोबाइल तक इसे पहुँचाने में प्रो. मदनमोहनमदनमोहन झा तथा उनके्र श्री सृजना का अतुलनीय योगदान है न इनके प्रति कृतज्ञता अर्पित करता हूँ। ऐप को और अधिक उपयोगी नेाने हेतु आपसेाव आमंत्रित हैं।
विदुषामनुचरः
संवत्धपूर्णिमा संवत् 2077 जगदानन्द झा
,्कृतगृहम्, डी .202 / 4, कूर्मांचल नगर, लखनऊ
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