Amritvani

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श्री स्वामी जी की अमृतवाणी - ‘संत कबीर, मीराबाई’

संत कबीर की वाणी समझ में न आने पर भी उसका लगाव कम नहीं होता क्योंकि जिस सत्य का उन्होंने वर्णन किया है, वह अनुभव गम्य है, वह वाणी से समझाने में नहीं आता। अभ्यास के परिणाम में जब वह दृश्य स्पष्ट देखने में आ जाता है, तभी समझ में आता है। संत कबीर का कथन है-

‘‘हम कही आँखिन की देखी, 

तुम कहो कागज की लेखी। 

मोर तोर मनवा एकै कैसे होय।’’

अतः सबके लिए एक परमात्मा की शरण, एक नाम का जाप और अभ्यास अपेक्षित है।

पूज्य स्वामी श्री अड़गड़ानन्दजी महाराज के मुखारविन्द से नि:सृत अमृतवाणियों का संकलन

1. नैहर दाग लगल मोरि चुनर

2. बलम राउर देशवा में चुनरी बिकाय

3. सदगुरु ज्ञान बदरिया बरस

4. शब्द सो प्रीति करै सोई पाव

5. अड़गड़ मत है पूरों का

6. बहुरि न अइहैं कोऊ शूरों के मैदान में

7. छाओ छाओ हो फकीर गगन में कुटा

8. तवन घर चेतिहे रे भाई!

9. का कहीं, केसे कहीं

10. सार्इं के संग सासुर आई

11. भजन किसका, कैसे और क्यों?

- Sant Kabir / Kabirdas, Mirabai / Meera Bai, Kabir Ke Dohe.

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