ईश्वर ने हमें एक उपहार दिया है - यह जीवन। इस उपहार के बदले ईश्वर ने भी हमसे एक उपहार की उम्मीद की है, जो हमें स्वयं को ही देना है। यह उपहार ही हमारे जीवन की सफलता निश्चित करेगा।
इस पुस्तक में हम समझेंगे, जब हमारा शरीररूपी मंदीर तमोगुण के तेल, रजोगुण की रेत और सत्वगुण के अहंकार से ग्रसीत होता है तो उसे पवित्र करने का मार्ग क्या है? अपनी प्रकृति को समझते हुए जानें कि आपके जीवन की सफलता में किन गुणों का सबसे अधिक योगदान होगा। ये ऐसे गुण हैं, जो आपको जीवन में आनेवाली समस्याओं के पार देखने की क्षमता देते हैं। ये आपको निराशा से बचाते हैं और तम, रज एवं सत्व से मुक्ति दिलाकर, गुणातीत अवस्था की ओर ले जातेे हैं। आइए, इन गुणों का अभ्यास करके स्वयं को वह उपहार दें, जिसके बाद इस शरीररूपी मंदीर में ईश्वर का निवास होगा।
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।