1. कवित विवेक एक नहिं मोरे। सत्य कहहुँ लिखि कागद कोरे।
2. कवि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ। मति अनुरूप स्वयम् गुण गावहुँ।
3. निज कवित्त केहि लाग न नीका। सरस होय अथवा अति फीका।
4. जे पर भनति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं।
5. कीरति भनित भूति भल सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई।
अर्थात्-
(1) कविता लिखने का न तो विवेक है और न ही लिखने का तरीका सही है जो मैं कोरे कागज पर लिखकर सत्य ही कह रहा हूँ।
(2) अर्थात न मैं कवि हूँ न चतुर सुजान हूँ बस अपनी मति के द्वारा काव्य रचना की है।
3) अपनी कविता सबको अच्छी लगती है चाहे सरस हो या नीरस जैसे अपनी कविता अपनी औलाद के समान-और दूसरे की कविता भावी दामाद की तरह होती है।
(4) जो दूसरों की कविता सुनकर खुश होते हैं ऐसे उत्तम पुरुष संसार में कम होते हैं।
(5) कीर्ति और कविता और कंचन (धनी) सराहनीय है जिनसे गंगाजल के समान सभी का हित हो।
इस प्रकार से जो हमने अपनी मती गती से काव्य कृती में स्वान्तः सुखाय की दृष्टि से जो अक्षर उकेरे हैं वह कहीं तक आत्मरंजन से मनोरंजन तक प्रासंगिक एवं सराहनीय ही होंगे।
इसी आशा के साथ आपका अपना...
शिवमंगल सिंह चन्देल
‘स्वयम् चौबेपुरी’
शिवमंगल सिंह चन्देल 'स्वयम् चौबेपुरी'
पिता : स्व. स्वरूप सिंह चन्देल
शैक्षिक योग्यता : इन्टरमीडिएट, हिन्दी सा. विशारद (स्वाध्यायी)
प्रस्तुत कार्यक्रम : कवि मंच एवं आकाशवाणी केन्द्र आदि
सम्मानित : श्री काशी हिन्दी साहित्य सेवा समिति द्वारा प्रति वर्ष
उपाधियाँ : ‘काव्य कलाधर’ ‘वाणी सम्राट’ आदि
दृष्टायी चित्रण : यू ट्यूब प्रकाश कवि सम्मेलन पार्ट 1
अन्य कार्यक्रम : मानस प्रवचन, भजनोपदेशक, मंच संचालन
सम्पर्क :
ग्राम-जरारी, पो. चौबेपुर, तह. बिल्हौर,
जिला कानपुर (नगर)
मो. : 7499757618