आँख की किरकिरी (Hindi Sahitya): Aankh Ki Kirkirie (Hindi Novel)

· Bhartiya Sahitya Inc.
३.७
७ समीक्षाहरू
इ-पुस्तक
208
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योग्य

यो इ-पुस्तकका बारेमा

आँख की किरकिरी’ रवीन्द्रनाथ टैगोर के बंगला उपन्यास ‘चोखेर बालि’ का हिन्दी अनुवाद है। कई कारणों से इस उपन्यास की गिनती गुरुदेव की सर्वोत्कृष्ट रचनाओं में होती है। इसका प्रथम प्रकाशन 1902 ई. में हुआ था। इस प्रकार यह उपन्यास सच्चे अर्थों में भारत का पहला आधुनिक उपन्यास है।

मूल्याङ्कन र समीक्षाहरू

३.७
७ समीक्षाहरू

लेखकको बारेमा

रवीन्द्रनाथ टैगोर
जन्म :- 7 मई 1861, कोलकाता के जोड़ासांको में। मृत्यु :- 7 अगस्त 1941, कोलकाता।
उपाधि :- गुरुदेव।
पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर की चौदहवीं संतान। नौ बरस की उम्र में ‘भानुसिंहेर पदावली’ पहली कविता की रचना। अठारह वर्ष की उम्र में आध्यात्मिक अनुभूतियाँ। 9 दिसंबर 1883 को विवाह। 41 बरस की उम्र में विधुर। कार्यदक्ष कुशल जमींदार का जीवन। 21 दिसंबर, 1901 को शांतिनिकेतन में पाँच विद्यार्थियों का स्कूल खोला, जो आज अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय है। नवम्बर, 1907 में प्रिय पुत्र शमीन्द्र की मृत्यु। ‘जन गण मन’ राष्ट्रगान 1911 में लिखा। बाँग्लादेश का राष्ट्रगान भी रवीन्द्रनाथ ने ही लिखा। दो देशों का राष्ट्रगान लिखने वाले कवि। 27 मई 1912 को इंग्लैंड की यात्रा के समय ‘गीतांजलि’ का अंग्रेजी अनुवाद ले गए। विलियम बटलर यीट्स ‘गीतांजलि’ पर मुग्ध। 19 नवम्बर, 1912 को नोबेल पुरस्कार ‘गीतांजलि’ पर। 6 मार्च, 1915 को शांतिनिकेतन में गांधी से मुलाकात। 13 अप्रैल, 1919 को जलियाँवाला बाग कांड के विरोध में ‘नाइटहुड’ की उपाधि लौटाई। चित्रकार, अभिनेता, कवि, उपन्यासकार, निबंधकार, नाटककार रवीन्द्रनाथ जादू भी जानते थे।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर उन साहित्य सर्जकों में हैं, जिन्हें काल की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। रचनाओं के परिमाण की दृष्टि से भी कम ही लेखक उनकी बराबरी कर सकते हैं उन्होंने एक हजार से भी अधिक कविताएँ लिखीं और दो हज़ार से भी अधिक गीतों की रचना की। इनके अलावा उन्होंने बहुत-सारी कहानियाँ, उपन्यास, नाटक तथा धर्म, शिक्षा, दर्शन, राजनीति और साहित्य—जैसे विविध विषयों से संबंधित निबंध लिखे। उनकी दृष्टि उन सभी विषयों की ओर गई, जिनमें मनुष्य की अभिरुचि हो सकती है। कृतियों के गुण-गत मूल्यांकन की दृष्टि से वे उस ऊँचाई तक पहुँचे थे, जहाँ कुछेक महान् रचनाकार ही पहुँचते हैं। जब हम उनकी रचनाओं के विशाल क्षेत्र और महत्त्व का स्मरण करते हैं, तो इसमें तनिक आश्चर्य नहीं मालूम पड़ता कि उनके प्रशंसक उन्हें इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा साहित्य-स्रष्टा मानते हैं।

 

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