केशी राक्षस से संत्रस्त उर्वशी अप्सरा का राजा पुरूरवा उद्धार करता है। वे एक दूसरे पर आकर्षित हैं। उर्वशी राजा के प्रणय पर मंत्रमुग्ध है। विदूषक माणवक की त्रुटी से उर्वशी का एक विशिष्ट 'प्रणयपत्र' देवी औशीनरी को हस्तगत हो जाता है। राजा उससे डाँट खा कर उसका कोप शांत करता है। उधर ..... इन्द्रसभा में आचार्य भरतमुनि द्वारा निर्देशित एक विशेष नाटक में उर्वशी 'पुरुषोत्तम विष्णु' के स्थान पर 'पुरूरवा' नाम का उच्चारण कर देती है। तब क्रोधित भरतमुनि उर्वशी को शाप दे देते हैं कि- 'वह पुत्रदर्शन तक मृत्युलोक में ही जीवन यापन करे।' उसी समय से उर्वशी राजा के पास रहने लगती
Fantazija
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O autoru
रामधारी सिंह 'दिनकर'(23 सितंबर 1908 - 24 अप्रैल 1974)
हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। बिहार प्रान्त के बेगुसराय जिले का सिमरिया घाट उनकी जन्मस्थली है। उन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार जबकि कुरुक्षेत्र को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74वाँ स्थान दिया गया।
जीवन परिचय दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को सिमरिया, मुंगेर, बिहार में हुआ था। पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक विद्यालय में अध्यापक हो गये। 1934 से 1947 तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्टार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर कार्य किया। 1950 से 1952 तक मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर कार्य किया और उसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने। उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से भी अलंकृत किया गया। उनकी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा उर्वशी के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। अपनी लेखनी के माध्यम से वह सदा अमर रहेंगे।
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