जो विरोधी थे उन दिनों (Hindi Sahitya) Jo Virodhi They Un Dino (Hindi Poetry)

· Bhartiya Sahitya Inc.
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À propos de cet e-book

निराला, मुक्ति बोध और अज्ञेय के ‘तार सप्तक’ से लेकर आजतक की तमाम आधुनिक हिन्दी कविता, छंद-विरोध की कविता न होते हुए भी, कथित सर्वमान्य सार्वजनिक स्वीकृति शायद इसलिए प्राप्त नहीं कर पाई; क्योंकि यहाँ उसकी सृजनशील गूढ़ अतिरंजित वैचारिकता के द्वन्द्व का पर्याप्त विविध विस्तार तो मिलता है, किन्तु छांदिक लयात्मकता के अंतःसूत्र, किंचित, विखरे-बिखरे से ही प्रतीत होते हैं। निराला ने झंदबद्धता की रूढ़ि को तोड़ा जरूर, किन्तु उसे गहनतम सूक्ष्म वैचारिक-क्रान्ति से थोड़ा जोड़ा भी। हालांकि वैचारिक-विविधता में विपुलता हमेशा प्रश्नांकित बनी रहेगी।

क्रान्तिचेता पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार कुम्भज निरन्तर सृजनशील और सजग साहित्यकार हैं जिनकी अनेकों कविता पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘जो विरोधी थे उन दिनों’ उनका नव्यतम कविता संग्रह है। संग्रह की कवितायें अपनी वैचारिक व्यापकता, बेबाकी, लयात्मक भाषा और अभिव्यक्ति की विशिष्ट शैली के कारण प्रभावित करती हैं।

भारतीय साहित्य संग्रह हिन्दी साहित्य की अनुपलब्ध मूल्यवान कृतियों को ई-पुस्तक में रूपान्तरित कर आधुनिक मोबाइल पाठकों के लिए उपलाब्ध कराने तथा पुनर्पाठ के अंतर्गत नवीन संस्करण प्रकाशित करके पाठकों को उपलब्ध कराने हेतु सतत संलग्न है ताकि पाठकगण हिन्दी साहित्य के विपुल भन्डार से परिचित हो सकें। प्रस्तुत काव्य संग्रह का प्रकाशन हमारी इसी श्रंखला की कड़ी है।

À propos de l'auteur

राजकुमार कुम्भज

• जन्म 12 फरवरी 1947, मध्य प्रदेश

• स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं किसान परिवार/ छात्र जीवन में सक्रिय राजनीतिक भूमिका के कारण पुलिस-प्रशासन द्वारा लगातार त्रस्त/ बिहार 'प्रेस-विधेयक' 1982 के विरोध में सशक्त और सर्वथा मौलिक-प्रदर्शन/ आपात्काल 1975 में भी पुलिस बराबर परेशान करती रही/ अपमानित करने की हद तक 'सर्च' ली गई/ यहाँ तक कि निजी ज़िन्दगी में भी पुलिस-दखलंदाजी भुगती/ 'मानहानि विधेयक' 1988 के खिलाफ़ ख़ुद को ज़ंजीरों में बाँधकर एकदम अनूठा सर्वप्रथम सड़क-प्रदर्शन/ डेढ़-दो सो शीर्षस्थानीय पत्रकारों के साथ जेल/ देशभर में प्रथमतः अपनी पोस्टर कविताओं की प्रदर्शनी कनॉट प्लेस नई दिल्ली 1972 में लगाकर बहुचर्चित/ गिरफ़्तार भी हुए/ दो-तीन मर्तबा जेल यात्रा/ तिहाड़ जेल में पन्द्रह दिन सज़ा काटने के बाद नए अनुभवों से भरपूर/ फिर भी संवेदनशील, विनोद प्रिय और ज़िन्दादिल/ स्वतंत्र पत्रकार

• स्वतंत्र-कविता-पुस्तकें अभी तक :

1. कच्चे घर के लिए 1980

2. जलती हुई मोमबत्तियों के नीचे 1982

3. मुद्दे की बात 1991 (अप्रसारित)

4. बहुत कुछ याद रखते हुए

5. दृश्य एक घर है 2014

6. मैं अकेला खिड़की पर  2014

7. अनवरत 2015

8. उजाला नहीं है उतना 2015

9. जब कुछ छूटता है 2016

10. बुद्ध को बीते बरस बीते 2016

11. मैं चुप था जैसे पहाड़ 2016

12. प्रार्थना से मुक्त 2016

13. अफ़वाह नहीं हूँ मैं 2016

14. जड़ नहीं हूँ मैं 2017

15. और लगभग इस ज़िन्दगी से पहले 2017

16. शायद ये जंगल कभी घर बने 2017

17. आग का रहस्य 2017

18. निर्भय सोच में 2017

19. घोड़े नहीं होते तो ख़िलाफ़ होते 2018

20. खोलेगा तो खुलेगा 2018

21. पूछोगे तो जानोगे 2018

22. एक नाच है कि हो रहा है 2018

23. अब तो ठनेगी ठेठ तक 2018

24. कुछ पत्थर चुप जैसे 2018

25. कविता कारण दुःख 2018

26. कलाविद् 2018

27. मैं यात्रा में हूँ 2019

28. वे जो थे हममें से ही कुछेक 2019

29. जिस तरह घेरती है लौ 2019

30. अभी भूकम्प नहीं आया है 2019

31. अँधेरे में अवश्य जो 2019

32. एक करघा कराहों में 2020

33. था थोड़ा लोहा भी था 2020

 

•व्यंग्य-संग्रह : आत्मकथ्य 2006

•अतिरिक्त : विचार कविता की भूमिका 1973 / शिविर 1975 / त्रयी 1976 / काला इतिहास 1977 / वाम कविता 1978 /चौथा सप्तक 1979 / निषेध के बाद 1981 / हिन्दी की प्रतिनिधि श्रेष्ठ कविता 1982 / सदभावना 1985 / आज की हिन्दी कविता 1987 / नवें दशक की कविता-यात्रा 1988 / कितना अँधेरा है 1989 / झरोखा 1991 / मध्यान्तर 1992-94-1995 / Hindi Poetry Today Volume-2 1994 / छन्द प्रणाम 1996 / काव्य चयनिका 2015 आदि अनेक महत्वपूर्ण तथा चर्चित कविता-संकलनों में कवितायें सम्मिलित और अंग्रेज़ी सहित भारतीय भाषाओं में अनुदित ।

•देश की लगभग सभी महत्वपूर्ण, प्रतिष्ठित, श्रेष्ठपत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर रचनाओं का प्रकाशन।

सम्पर्क : 331, जवाहरमार्ग, इंदौर, 452002 (म।प्र।)

फ़ोन : 0731-2543380

email:

rajkumarkumbhaj47@gmail।com

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