माँ की कृपा के लिए श्री दुर्गासप्तशती के पाठ का विधान सनातन है। भक्तजन दोनों नवरात्रों में तथा नित्य सप्तशती का पाठ करते हैं। संस्कृत न जानने वाले भक्तजनों को श्रीदुर्गासप्तशती के नित्य पाठ में कठिनाइयां आती हैं। इसके परिणाम स्वरूप भगवती जागरण के नाम पर कीर्तन-भजन के आयोजन तो होते हैं लेकिन उनमें विह्वलता की अपेक्षा मनोरंजन-सा प्रतीत होने लगता है। ऐसे भक्तों के लिए जगदम्बा के प्रसाद स्वरूप इस पुस्तक का प्रणयन हुआ है। नवरात्र में नित्य पाठ और सम्पुट लगा कर सामूहिक पाठ करने से शक्ति का जागरण होगा ऐसा विश्वास है।