तू परमहंस होशील / Tu Paramhamsa Hoshil

· Ramakrishna Math, Nagpur
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प्रस्तुत पुस्तकाचे लेखक स्वामी सर्वगतानंद (तेव्हाचे नारायण) मुंबई येथे स्वामी अखंडानंदांना भेटले होते. त्यांनी सर्वगतानंदांना रामकृष्ण संघामध्ये प्रवेश दिला व सांगितले की, साधू व्हायचे असल्यास त्यांनी कनखलला चालत जावे. आपल्या गुरूंच्या आज्ञेनुसार तसेच हिमालयातील परिभ्रमण काळात त्यांचे गुरू (स्वामी अखंडानंद) अनवाणी पायांनी फिरले होते ह्याचे स्मरण ठेऊन बावीस वर्षांच्या नारायणने आपले जोडे टाकून देऊन हजार मैल अनवाणी चालत जायचे ठरवले. मुंबई ते कनखल या त्यां एक हजार मैलांच्या प्रवासाचा 3 डिसेंबर 1934 हा पहिला दिवस होता. काही आठवड्यांपूर्वी ते स्वामी अखंडानंदांना भेटले होते. त्यांच्या मुंबई ते कनखल या वाटेत आलेले कसोटीचे क्षण आणि अनुभव हा एक दुसर्या गोष्टीचा विषय आहे. परंतु प्रस्तुत पुस्तकात सांगितली जाणारी गोष्ट ही हा प्रवास पूर्ण झाल्यानंतरची अर्थात कनखलला पोचल्यानंतरची आहे. या आठवणींमध्ये स्वामी कल्याणानंदांच्या आठवणींबरोबरच त्यांचे गुरुबंधू आणि सहकारी असलेले स्वामी विवेकानंदांचे मराठी शिष्य स्वामी निश्चयानंद आणि रामकृष्ण संघाच्या व बाहेरील साधूंच्या बर्याच उद्बोधक व प्रेरणादायी घटना सांगण्यात आल्या आहेत. तसेच त्यावेळची कनखल आश्रमाची परिस्थिती कशी होती, तेथील कार्यकर्त्यांना कशा-कशा गोष्टींना तोंड द्यावे लागले या सार्या घटना अत्यंत रोचक भाषेत वर्णिल्या आहेत. तसेच कल्याण महाराजांच्या भुलू नामक कुत्रीची गोष्टसुद्धा अतिशय सुंदर अशी आहे.

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