त्रेता एक सम्यक मूल्यांकन - Treta Ek Samyak Mulyankan: उद्भ्रांत के महाकाव्य "त्रेता" की पड़ताल

·
Book Bazooka
4,4
8 avis
E-book
174
Pages

À propos de cet e-book

 मिथकों के बारे में “उद्भ्रांत का काव्य:मिथक के अनछुए पहलू” के लेखक डॉ॰ शिवपूजन लाल लिखते हैं कि आधुनिक परिप्रेक्ष्य में मिथक असत शक्तियों से लड़ने का एक सशक्त संसाधन है,बुराई और कपट पर अच्छाई और ईमानदारी की जीत का प्रतिरूप है।जहां कवि उद्भ्रांत की लंबी कविता “रुद्रावतार” को हिन्दी के महाकवि “राम की शक्तिपूजा” की परंपरा से जोड़कर देखा जाता है,वहाँ उनके महाकाव्य “राधा-माधव” की राधा केवल पौराणिक चरित्र मात्र नहीं लगती है,बल्कि वह आधुनिक चेतना की वाहक है।उसे चिंता है,आज के समाज की और वैश्विक पर्यावरण के बिगड़ते रूप की।इसी तरह उनके खंड काव्य “वक्रतुंड” में गणेशजी की छवि में गांधीजी का आभास होता है।कवि द्वारा बताए गए आठ असुर मानव के आठ मनोविकार है।अपनी सूक्ष्म विवेचन दृष्टि से महाकाव्य ‘त्रेता’ में रामचरितमानस और रामायण के उपेक्षित स्त्री पात्रों का कवि ने विस्तार से चरित्र चित्रण किया है। 

उद्भ्रांत जैसे महान रचनाकार हिंदी साहित्य की प्राचीन परंपरा से जुड़े हुए है।उन्होंने राम और कृष्ण भक्ति की दोनों धाराओं पर अपनी कलम खूब चलाई है।उनकी अधिकांश कविताएं आज की समस्याओं से न केवल दूर रहने का आह्वान करती है,बल्कि उनसे लड़ने के लिए भी प्रेरित करती है।डॉ॰ आनंद प्रकाश दीक्षित की उनके महाकाव्य त्रेता पर की गई समीक्षा “त्रेता: एक अंतर्यात्रा”, उसी पर दूसरी कमल भारती द्वारा की समीक्षा “त्रेता-विमर्श और दलित चिंतन” उनके मिथकीय रचनाओं के व्यवहारिक पक्ष का विवेचन करती हैं।उनके व्यक्तित्व-कृतित्व की विषद व्याख्या उनके मुख्य काव्य “स्वयंप्रभा”,“रुद्रावतार”,“राधा-माधव”,“अभिनव-पांडव”,“प्रज्ञावेणु”,”वक्रतुंड”,”त्रेता”, “ब्लैक-होल” आदि में मिलती है। 

हिंदी साहित्य के हर काल में मिथकों का प्रयोग होता रहा है।निराला की “राम की शक्ति-पूजा”, छायावादोत्तर युग में “उर्वशी”,“कुरुक्षेत्र”,”परशुराम की प्रतीक्षा”,“रश्मिरथी” आदि दिनकर की मुख्य मिथकीय रचनाएं हैं तो धर्मवीर भारती का लिखित काव्य-नाटक “अंधा युग” में मिथक का पौराणिक स्वरूप महत्वपूर्ण न होकर समकालीन समय और समाज के युगबोध का द्योतक है।इस युग में नरेश मेहता, उद्भ्रांत,जगदीश चतुर्वेदी,डॉक्टर विनय बलदेव वंशी आदि ने मिथकीय रूपांतरण को अपने-अपने तरीके से गति दी है।उन्होने जीवन-मृत्यु के अंतर्द्वंद को विश्लेषित किया है। 

कवि उद्भ्रांत को मिथकीय पात्र क्यों आकर्षित करते हैं?यह जानने के लिए उनके कृतित्व-व्यक्तित्व का हमें पहले विश्लेषण करना होगा।कवि के पूर्वज आगरा के सनाढ्य ब्राह्मण थे।उनके दादाजी रेलवे में स्टेशन मास्टर थे।उनके पिताजी उमाशंकर पाराशर धार्मिक स्वभाव वाले थे।“कल्याण”,“साप्ताहिक हिंदुस्तान”,“धर्मयुग” जैसी अनेक पत्र-पत्रिकाएं नियमित रूप से उनके घर आती थी।घर में भजन-कीर्तन होते रहते थे।बचपन से उनका कविता के प्रति रुझान रखना उनके पिता जी को कतई पसंद नहीं था।मगर उनसे मिलने के लिए घर में महत्वपूर्ण साहित्यकार आया करते थे।उनमें हरिवंश राय बच्चन, पंडित केदार नाथ मिश्रा जैसे प्रसिद्ध साहित्यकारों के नाम शामिल है।पिछले सौ सालों के इतिहास में शिखर आलोचकों द्वारा त्रेता पर विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करना अपने आप में एक उपलब्धि है।जहां महाकाव्य की विधा विलुप्त होती जा रही थी,वहां उन्होंने रामकथा के विभिन्न अज्ञात और उपेक्षित पात्रों को उद्घाटित कर समकालीन विमर्श की धार देकर पारंपरिक साहित्य में नई जान फूंकी हैं।पाश्चात्य परंपरावादी आलोचक टी॰एस॰इलियट के शब्दों में इसे अपने आप में एक उपलब्धि माना जा सकता है।उद्भ्रांत के लेखन का प्रयोजन मानव समाज के अर्धांग की मुक्ति,दलित-उत्पीड़ित समाज में समता और बंधुत्व की स्थापना और सांस्कृतिक क्रांति की कामना करना है।कवि का लक्ष्य सामाजिक प्रबोधन और उन्नयन है।  

त्रेता में नारी-मुक्ति,दलित-मुक्ति,प्रबंध-निर्माण,नव्यता,घटना-प्रसंग,पात्रों की चरित्र योजना,अद्भुत कल्पनाशीलता, नवोदय भावना,कलात्मक अभिव्यक्ति इस काव्य को महाकाव्य की गरिमा प्रदान करती है।यह नारी-विमर्श,दलित विमर्श के सामाजिक अभिप्राय में इसे प्रगतिशील चेतना का महाकाव्य माना जा सकता है।कमल भारती ने उद्भ्रांत के महाकाव्य त्रेता में दलित चिंतन की गहन पड़ताल की है।उन्होंने धोबिन और शंबूक की मां  पात्रों में कवि की मौलिकता की खोज की है।धोबिन वह है,जिसके कारण राम के द्वारा सीता का निष्कासन होता है। धोबिन साधारण स्त्री है,उसमें स्त्री मुक्ति की आकांक्षा है।रामकथा के इन स्त्री पात्रों का चयन करते समय उन्हें अवश्य इस बात की पीड़ा हुई।शंबूक की जननी के रूप में नई स्त्री पात्र की रचना कर कवि ने दलित-विमर्श को नई दिशा दी है।यदि कवि चाहता तो इस प्रसंग को छोड़ भी सकता था क्योंकि इससे त्रेता के मूल कथानक पर कोई असर नहीं पड़ रहा था।उसके लिए वह सचमुच में बधाई के पात्र हैं। 


त्रेता के समीक्षक डॉक्टर आनंद प्रकाश दीक्षित ने इसे त्रासदी महाकाव्य माना है।उनका मत में पौर्वात्य और पाश्चात्य दोनों काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों के आधार पर त्रेता का परीक्षण करने पर इसे महाकाव्य की श्रेणी में लिया जा सकता है।शिल्प और रस की दृष्टि से भी यह त्रासदी महाकाव्य है।इसका विवेचन करने से पहले हम महाकाव्य की शर्तों पर दृष्टिपात करते हैं,जिसकी आचार्य भामह,दंडी,मम्मट और विश्वनाथ ने अपने-अपने ढंग से विस्तृत व्याख्या की है।उनके अनुसार जिस काव्य में सर्गों का निबंधन हो,जिसमें धीरोदात्त नायक हो,श्रृंगार,वीर,शांत में से कोई एक रस अंगी हो,कथा ऐतिहासिक हो,उसमें नाटकीयता हो,चतुर्वर्ग धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष में से एक फल हो, उस काव्य को महाकाव्य कहते हैं।त्रेता इन कसौटियों पर पूरी तरह खरा उतरता है। 

पाश्चात्य मत के अनुसार,“Epic means a long poem, typically one derived from ancient oral tradition, narrating the deeds and adventures of heroic or legendary figures or the past history of a nation”

कहने का अर्थ यह है कि दोनों भारतीय और पाश्चात्य मतों के अनुसार त्रेता में व्यक्तिगत चेतना अनुप्राणित होकर समस्त राष्ट्र की चेतना में बदल जाती है,जो कि महाकाव्य की आवश्यक शर्त है।वरिष्ठ साहित्यकार नंदकिशोर नौटियाल के शब्दों में कवि उद्भ्रांत कल्पना के घोड़े पर सवार होकर त्रेतायुग में चले गए और मर्यादा पुरुषोत्तम राम की उस अवधि के स्त्री-विमर्श और सामाजिक उद्देश्यों से प्रभावित होकर वर्तमान में लौटा आए और वहाँ की पीड़ा को अपने महाकाव्य में स्वर दिए।अन्य राम कथाओं में मानव और राक्षस पुरुष पात्रों के विषम परिस्थितियों में कुछ न कर पाने की छटपटाहट जिस गहराई से अभिव्यक्त होती है,उसी छटपटाहट को त्रेता में उन्होंने चौबीस स्त्री पात्रों के माध्यम से आज की नारी की विस्फोटक चेतना को ध्यान में रखते हुए स्वर प्रदान किए है।मानवीय मूल्यों के अवक्षय को प्रस्तुत करने वाली उनकी काव्यात्मक रामकथा त्रेता आज की शासकीय और सामाजिक विसंगतियों पर करारा कटाक्ष है।आधुनिक पीढ़ी तत्कालीन पाराशरी संस्कार को भूलना चाहती है और आज के युग की विधवाओं पर हो रहे अत्याचारों के समाप्ति की प्रतीक्षा कर रही है।उन विधवाओं को काशी और वृंदावन के रौरव नरक से मुक्ति दिलाना ही उद्भ्रांत के स्त्री-विमर्श,दलित-विमर्श और अंतिम-व्यक्ति-विमर्श जैसे विषयों को त्रेता के माध्यम से जन मानस के समक्ष लाना है।त्रेता युग के ये विषय आज भी कलयुग में चारों ओर फैले हुए हैं।उद्भ्रांत द्वारा युगांतरकारी वैचारिक क्रांति को जन्म देने के संदर्भ में हिन्दी के शिखर आलोचक नामवर सिंह का कहना है कि यह हिंदी में पहली बार हो रहा है,एक कवि रामायण काल की दर्जनों स्त्रियों की कहानियों को एक सूत्र में बांध रहा है और स्त्री पात्रों के माध्यम से समकालीन प्रश्नों और वर्तमान जीवन की विद्रूपताओं और विसंगतियों को सामने लाने का प्रयास कर रहा है।अन्य प्रसिद्ध डॉक्टर खगेंद्र ठाकुर के अनुसार उद्भ्रांत द्वारा मिथकों का अपने साहित्य में इस्तेमाल करना श्रेष्ठ कार्य है।

Notes et avis

4,4
8 avis

Donner une note à cet e-book

Dites-nous ce que vous en pensez.

Informations sur la lecture

Smartphones et tablettes
Installez l'application Google Play Livres pour Android et iPad ou iPhone. Elle se synchronise automatiquement avec votre compte et vous permet de lire des livres en ligne ou hors connexion, où que vous soyez.
Ordinateurs portables et de bureau
Vous pouvez écouter les livres audio achetés sur Google Play à l'aide du navigateur Web de votre ordinateur.
Liseuses et autres appareils
Pour lire sur des appareils e-Ink, comme les liseuses Kobo, vous devez télécharger un fichier et le transférer sur l'appareil en question. Suivez les instructions détaillées du Centre d'aide pour transférer les fichiers sur les liseuses compatibles.