पुष्पहार (Hindi Sahitya): Pushphaar (Hindi Stories)

· Bhartiya Sahitya Inc.
4.3
Maoni 30
Kitabu pepe
84
Kurasa
Kimetimiza masharti

Kuhusu kitabu pepe hiki

शिवानी की पहली रचना अल्मोड़ा से निकलने वाली ‘नटखट’ नामक एक बाल पत्रिका में छपी थी। तब वे मात्र बारह वर्ष की थीं। इसके बाद वे मालवीय जी की सलाह पर पढ़ने के लिए अपनी बड़ी बहन जयंती तथा भाई त्रिभुवन के साथ शान्तिनिकेतन भेजी गईं, जहाँ स्कूल तथा कॉलेज की पत्रिकाओं में बांग्ला में उनकी रचनाएँ नियमित रूप से छपती रहीं। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर उन्हें ‘गोरा’ पुकारते थे। उनकी ही सलाह, कि हर लेखक को मातृभाषा में ही लेखन करना चाहिए, शिरोधार्य कर उन्होंने हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। ‘शिवानी’ की पहली लघु रचना ‘मैं मुर्गा हूँ’ 1951 में धर्मयुग में छपी थी। इसके बाद आई उनकी कहानी ‘लाल हवेली’ और तब से जो लेखन-क्रम शुरू हुआ, उनके जीवन के अन्तिम दिनों तक अनवरत चलता रहा। प्रस्तुत संग्रह में उनकी सात कहानियों का प्रकाशन किया जा रहा है।

Ukadiriaji na maoni

4.3
Maoni 30

Kuhusu mwandishi

शिवानी
जन्म :- 17 अक्टूबर 1923।
मृत्यु :- 21 मार्च 2003।
गौरापंत शिवानी का जन्म राजकोट (गुजरात) में हुआ था। आधुनिक अग्रगामी विचारों के समर्थक पिता श्री अश्विनीकुमार पाण्डे राजकोट स्थित राजकुमार कॉलेज के प्रिंसिपल थे, जो कालांतर में माणबदर और रामपुर की रियासतों में दीवान भी रहे। माता और पिता दोनों ही विद्वान, संगीत प्रेमी और कई भाषाओं के ज्ञाता थे। साहित्य और संगीत के प्रति गहरी रुझान ‘शिवानी’ को उनसे ही मिली। शिवानी जी के पितामह संस्कृत के प्रकांड विद्वान-पं. हरिराम पाण्डे, जो बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में धर्मोपदेशक थे, परम्परानिष्ठ और कट्टर सनातनी थे। महामना मदनमोहन मालवीय से उनकी गहन मित्रता थी। वे प्रायः अल्मोड़ा तथा बनारस में रहते थे, अतः अपनी बड़ी बहन तथा भाई के साथ शिवानी जी का बचपन भी दादाजी की छत्रछाया में उक्त स्थानों पर बीता। उनकी किशोरावस्था शान्तिनिकेतन में, और युवावस्था अपने शिक्षाविद् पति के साथ उत्तर प्रदेश के विभिन्न भागों में बीती। पति के असामयिक निधन के बाद वे लम्बे समय तक लखनऊ में रहीं और अन्तिम समय में दिल्ली में अपनी बेटियों तथा अमरीका में बसे पुत्र के परिवार के बीच अधिक समय बिताया। उनके लेखन तथा व्यक्तित्व में उदारवादिता और परम्परानिष्ठता का जो अद्भुत मेल है, उसकी जड़ें इसी विविधमयतापूर्ण जीवन में थीं।
शिवानी की पहली रचना अल्मोड़ा से निकलने वाली ‘नटखट’ नामक एक बाल पत्रिका में छपी थी। तब वे मात्र बारह वर्ष की थीं। इसके बाद वे मालवीय जी की सलाह पर पढ़ने के लिए अपनी बड़ी बहन जयंती तथा भाई त्रिभुवन के साथ शान्तिनिकेतन भेजी गईं, जहाँ स्कूल तथा कॉलेज की पत्रिकाओं में बांग्ला में उनकी रचनाएँ नियमित रूप से छपती रहीं। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर उन्हें ‘गोरा’ पुकारते थे। उनकी ही सलाह, कि हर लेखक को मातृभाषा में ही लेखन करना चाहिए, शिरोधार्य कर उन्होंने हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। ‘शिवानी’ की पहली लघु रचना ‘मैं मुर्गा हूँ’ 1951 में धर्मयुग में छपी थी। इसके बाद आई उनकी कहानी ‘लाल हवेली’ और तब से जो लेखन-क्रम शुरू हुआ, उनके जीवन के अन्तिम दिनों तक अनवरत चलता रहा। उनकी अन्तिम दो रचनाएं ‘सुनहुँ तात यह अकथ कहानी’ तथा ‘सोने दे’ उनके विलक्षण जीवन पर आधारित आत्मवृतात्मक आख्यान हैं।
1979 में शिवानी जी को पद्मश्री से अलंकृत किया गया। उपन्यास, कहानी, व्यक्तिचित्र, बाल उपन्यास, और संस्मरणों के अतिरिक्त, लखनऊ, से निकलने वाले पत्र ‘स्वतन्त्र भारत’ के लिए ‘शिवनी’ ने वर्षों तक एक चर्चित स्तम्भ ‘वातायन’ भी लिखा। उनके लखनऊ स्थित आवास-66 गुलिस्तां कालोनी के द्वार लेखकों, कलाकारों, साहित्य प्रेमियों के साथ समाज के हर वर्ग से जुड़े उनके पाठकों के लिए सदैव खुले रहे।

Kadiria kitabu pepe hiki

Tupe maoni yako.

Kusoma maelezo

Simu mahiri na kompyuta vibao
Sakinisha programu ya Vitabu vya Google Play kwa ajili ya Android na iPad au iPhone. Itasawazishwa kiotomatiki kwenye akaunti yako na kukuruhusu usome vitabu mtandaoni au nje ya mtandao popote ulipo.
Kompyuta za kupakata na kompyuta
Unaweza kusikiliza vitabu vilivyonunuliwa kwenye Google Play wakati unatumia kivinjari cha kompyuta yako.
Visomaji pepe na vifaa vingine
Ili usome kwenye vifaa vya wino pepe kama vile visomaji vya vitabu pepe vya Kobo, utahitaji kupakua faili kisha ulihamishie kwenye kifaa chako. Fuatilia maagizo ya kina ya Kituo cha Usaidizi ili uhamishe faili kwenye visomaji vya vitabu pepe vinavyotumika.