सत्प्रसंगों की ऐसी महिमा है कि उन्हें पढ़ने-सुनते उनमें रूचि पैदा होती है। धीरे-धीरे वह रूचि उनमें गुणबुद्धि रखने लगती है। फिर तो यह मार्ग सिद्धान्त-सा बनकर मस्तिष्क में छा जाता है और हम वैसे ही बन जाते हैं। वे राजा हरिश्चन्द्र के जीवन-प्रसंग ही तो थे जिन्होंने गाँधी जी को सत्यनिष्ठा की प्रतिमूर्ति बना दिया ! वे भगवान एवं महापुरुषों की जीवनलीलाएँ ही तो थीं जिन्होंने गूढ़ आत्मज्ञान को केवल सात दिनों में राजा परीक्षित के हृदय में आत्मसात् करा दिया ! वह मनहर नाईं की एक कथा ही तो थी जिसने डिप्टी कलेक्टर सप्रू साहब को सिद्धपुरुष खटखटा बाबा बना दिया ! वे महापुरुषों एवं वीरों के आत्मबल-प्रदाता जीवन प्रसंग ही तो थे जिन्होंने बालक शिवाजी में से आत्मतृप्त कर्मयोगी सम्राट का प्राकट्य कर दिया ! हनुमानजी, ध्रुव, प्रह्लाद आदि कितने-कितनों के उदाहरण दें ? बड़े-बड़े अपराधी लोग भी संतों के जीवन-प्रसंग सुनकर साधु स्वभाव हो गये, पापी पुण्यात्मा बन गये, दुर्जन सज्जन बन गये और सज्जन सत्पद को प्राप्त कर मुक्त हो गये। इतना ही नहीं, सत्पद को प्राप्त सनकादि ऋषि, देवर्षि नारदजी आदि बड़े-बड़े महापुरुष भी सत्प्रसंग सुनने को सदा तत्पर रहते हैं। सर्वज्ञ प्रभु व प्रभु के प्यारे भी इन्हें सर्वथा जानते हुए भी बार-बार सुनने में आनंद का अनुभव करते हैं।
वेद पुरानि बसिष्ट बखानहिं । सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं ।। (रामचरित..,उ.का. 25.1)
ऐसे परम पवित्र, जीवनोद्धारक प्रसंगों को आत्मनिष्ठ परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू की अमृतवाणी के माध्यम से आपके हृदय में उतारने का प्रयास है यह छोटा सा सदग्रन्थ । यह सभी जातियों, वर्णों, मत-पंथ के लोगों के मंगल के लिए है। यह मानवमात्र के उत्थान के लिए है। महापुरुषों के ये जीवन प्रसंग बालक, किशोर, युवक, विद्यार्थी, बड़े-बुजुर्ग तथा सदाचारी-दुराचारी, सगुरे-निगुरे सभी के लिए प्रेरणादायी, हितकारी है।
जिन महापुरुषों के दर्शन का सत्संग-सान्निध्य का फल अवर्णनीय है, उनके जीवन-प्रसंगों को पढ़ने-सुनने, पढ़ाने-सुनाने और जन-जन तक पहुँचाने का फल भी अवर्णनीय एवं अनंत-अनंत है। ऐसी पुनीत सेवा का सुअवसर पाकर श्री योग वेदान्त सेवा समिति धनभागी, बड़भागी हो रही है और आप भी ऐसा लाभ लीजिये।