मांडवी का मौन वनवास

· ARUNA SHARMA ANOKHI
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वक्त की रफ्तार को कोई ना रोक सका, गुजरता समय मांडवी के मौन वनवास को बढ़ाता जा रहा था. वह अपने साथ हुए बर्ताव व अपमान को भी भूल ना सकी थी. किशोरावस्था का प्यार उसे ना मिल पाया था, पति से हमेशा उपेक्षित भाव मिला. राम के वनवास जाने के पश्चात भरत ने नगर के बाहर वनवासी रूप में जीवन जीने का मन बना लिया था. महल में अपने साथ हुए भेदभाव को भी मांडवी भूल न पाई थी.

समय का चक्र बढ़ता जा रहा था, अजनबी युवक का सानिध्य ही मांडवी को थोड़ा सुकून दे पाता था. राम आज चौदह वर्ष पश्चात अयोध्या आ रहे थे, साथ ही भरत का प्रण भी पूरा हो गया था, युवक यह जान चुका था. उसने मांडवी को महल तक छोड़ दिया व अपने प्यार की निशानी नौलखा हार दे दिया.

धोबी के वचनों को दिल से लगा राम ने सीता को वनवास में छोड़ आने का कहा तो मांडवी का हृदय हाहाकार कर उठा. वह क्रोध से भर उठी और अपने आप को मान अपमान का शिकार तो बताया ही साथ ही सीता के साथ हुए न्याय-अन्याय का जिक्र भी किया, किंतु वह हार गई निष्ठुर समाज के ताने-बाने से.

Ratings and reviews

4.6
7 reviews
Kalakshi Keshav Sharma
November 22, 2020
I LOVE IT. Really this is the story that i want for my inspiration. It shows the different angle of RAMAYANA. love the way you write. Please bring a adventure story next.
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Kaladitya keshav Sharma
November 26, 2020
Very deep analysis of an untouched character of our great mythological print.....must read this masterpiece
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कौतुकादित्य केशव शर्मा
November 24, 2020
मज़ा आ गया। रामायण का एक नया ही रूप देखने को मिला ।
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About the author

लेखिका अरुणा शर्मा, बचपन से ही अत्यंत दुर्लभ विचारों की धनी है. सदैव ही उनका ध्यान जीवन के उन पहलुओं पर जाता रहा जिन्हे समाज अक्सर अनदेखा करकर देता है. उनके विचार दूसरों को शीघ्र ही प्रभावित कर लेते है. उनके मन में समाज में बदलाव लाने की महत्कांक्षा है. "मांडवी का मौन वनवास" लिखने का विचार उनके मन में 14 वर्ष की उम्र में आया था परन्तु, परिस्थियों के अनुकूल न होने के कारण, इस विचार का उस समय क्रियान्वयन नहीं हो पाया. किन्तु अब वो सज्ज है, बदलाव के लिए. इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, जाति या समुदाय को ठेस पहुँचाना नहीं है. इसके मुख्य स्वरुप में लेखिका ने कुछ बदलाव किये है जो उनकी स्वयं की सोच है.

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