मैथिलीशरण गुप्त
(1886-1964)
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म उत्तर प्रदेश के अंतर्गत चिरगाँव, जिला झाँसी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में सन् 1886 ई. में हुआ था। इनके पिता सेठ रामचरण गुप्त निष्ठावान् भक्त तथा कवि थे। माता भी श्रद्धालु भक्त महिला थीं। आरम्भिक शिक्षा इन्हें चिरगाँव की ही पाठशाला में मिली; फिर ये झाँसी के मेकडॉन स्कूल में भरती हुए। किन्तु वहाँ से शीध्र ही घर लौट आए और इन्होंने प्रायः घर पर ही रहकर स्वाध्याय के द्वारा हिन्दी, संस्कृत और बंगला साहित्य का ज्ञान प्राप्त किया। इनका देहावसान सन् 1964 ई. में हुआ।
गुप्त जी के काव्य में मानव-जवीन की प्रायः सभी अवस्थाओं एवं परिस्थितियों का वर्णन हुआ है। अतः इनकी रचनाओं में सभी रसों के उदाहरण मिलते हैं। प्रबन्ध कार्य लिखने में गुप्त जी को सर्वाधिक सफलता प्राप्त हुई है।
मैथिलीशरण गुप्त की कविता का मूल स्वर राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक है। इन्होंने प्राचीन भारत का गौरव-गान अत्यन्त ओजस्वी वाणी में किया है। इनके काव्य में परिनिष्ठित खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है। वस्तुतः उसे काव्य के उपयुक्त सिद्ध करनेवालों में मैथिलीशरण अग्रणी थे।