खुशवंत सिंह
( 15 अगस्त 1915 - 20 मार्च 2014 )
खुशवंत सिंह का जन्म हडाली (अब पाकिस्तान) के एक छोटे से गाँव में हुआ। मॉर्डन स्कूल से मैट्रिकुलेशन और सेंट स्टीफेंस से इंटरमीडिएट करने के बाद खुशवंत सिंह ने लाहौर गवर्नमेंट कॉलेज से स्नातक किया और कानून की पढ़ाई के लिए लंदन के किंग्स कॉलेज में दाखिला लिया।
1939 में एल.एल.बी. और ‘बाट एट लॉ’ करने के बाद वे पुनः लाहौर लौटे और वहाँ हाईकोर्ट में वकालत करने लगे। बँटवारे के दौरान हुए दंगों के बीच उन्हें लाहौर छोड़कर दिल्ली आना पड़ा और इसी के साथ उन्होंने वकालत के धंधे से हमेशा के लिए तौबा कर ली। शीघ्र ही उन्हें भारतीय राजनयिक सेवा के तहत नौकरी मिल गई और ब्रिटेन के भारतीय उच्चायुक्त का ‘प्रैस आटैची’ और ‘इन्फर्मेशन अफसर’ बनाकर लंदन भेज दिया गया। इन्हीं दिनों उन्होंने कहानियाँ लिखना शुरू किया जो ब्रिटेन और कनाडा की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं।
1950-51 में वे भारत लौट आए और भारत-विभाजन पर अपना पहला उपन्यास लिखने में जुट गए। ‘मनो माजरा’ नाम से लिखे इस उपन्यास को प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय ‘ग्रोव प्रैस पुरस्कार’ मिला और इसे ‘ट्रेन टु पाकिस्तान’ शीर्षक से छापा गया।
नौ वर्षों तक ‘दि इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया’ (मुंबई) का संपादन करने के बाद जुलाई, 1979 को अचानक ही इससे पदच्युत होकर वे दिल्ली लौटे। कुछ समय तक ‘नेशनल हेराल्ड’ अखबार और ‘न्यू डेल्ही’ पत्रिका का संपादन करने के बाद 1980 में उन्होंने ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ का संपादन सँभाला और 1983 तक इस नौकरी में रहे। 1980 से 1986 तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे 1974 में मिली पद्मभूषण की उपाधि उन्होंने 1984 के ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के विरोध में लौटा दी। 2007 में उन्हें पुनः पद्मविभूषण की उपाधि से विभूषित किया गया।
कृतियाँ :-
उपन्यास :- ट्रेन टु पाकिस्तान, हिस्ट्री ऑफ सिख्स (दो खण्डों में), रंजीत सिंह, समुद्र की लहरों में, दिल्ली, औरतें।
कहानी-संग्रह :- दस प्रतिनिधि कहानियाँ :- (विष्णु का प्रतीक, कर्म, रेप, दादी माँ, नास्तिक, काली चमेली, ब्रह्म-वाक्य, साहब की बीवी, रसिया, मरणोपरांत।)।
ऐतिहासिक :- मेरा भारत।
साक्षात्कार :- मेरे साक्षात्कार।
आत्मकथा :- सच, प्यार और थोड़ी सी शरारत।