मेरी कहानियाँ-निर्मल वर्मा (Hindi Sahitya): Meri Kahaniyan-Nirmal Varma (Hindi Stories)

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हिन्दी-कहानी में आधुनिक-बोध लाने वाले कहानीकारों में निर्मल वर्मा का अग्रणी-स्थान है। उन्होंने कम लिखा है परंतु जितना लिखा है उतने से ही वे बहुत ख्याति पाने में सफल हुए हैं। उन्होंने कहानी की प्रचलित कला में तो संशोधन किये ही, प्रत्यक्ष यथार्थ को भेदकर उसके भीतर पहुँचने का भी प्रयत्न किया है। अपनी इन कहानियों को चुनने से पहले मैंने दुबारा पढ़ा था। पढ़ते समय मुझे बार-बार एक अंग्रेज़ी लेख की बात याद आती रही, ‘अर्से बाद अपनी पुरानी कहानियाँ पढ़ते हुए गहरा आश्चर्य होता है कि मैंने ही उन्हें कभी लिखा था। बार-बार यह भ्रम होता है कि मैं किसी अजनबी लेखक की कहानियाँ पढ़ रहा हूँ जिसे मैं पहले कभी जानता था। साथ-साथ एक अजीब किस्म का सुखद विस्मय भी होता है कि ये कहानियाँ एक ज़माने में उस व्यक्ति ने लिखी थीं, जो आज मैं हूँ।’

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 निर्मल वर्मा

जन्म :- 3 अप्रैल, 1929

शिक्षा :- सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली से इतिहास में एम.ए.। कुछ वर्ष अध्यापन।

निर्मल वर्मा का जन्म 1929 को शिमला में हुआ। उनकी संवेदनात्मक बुनावट पर उस पहाड़ी शहर की छायाएँ दूर तक पहचानी जा सकती हैं। बचपन के एकाकी क्षणों का यह अनुभव जहाँ निर्मल वर्मा के लेखन में एक सतत तन्द्रावस्था रचता है, वहीं उन्हें मनुष्य के मनुष्य से, और स्वयं अपने से अलगाव की प्रक्रिया पर गहन पकड़ देता है। सन् 1956 में ‘परिन्दे’ कहानी के प्रकाशन के बाद से नयी कहानी के इस निर्विवाद प्रणेता का सबसे महत्त्वपूर्ण, साठ का दशक, विदेश-प्रवास में बीता। 1959 में प्राग, चेकोस्लोवाकिया के प्राच्य विद्या संस्थान और चेकोस्लोवाक लेखक संध द्वारा आमंत्रित। सात वर्ष चेकोस्लोवाकिया में रहे और कई चेक कथाकृतियों के अनुवाद किए। कुछ वर्ष लन्दन में यूरोप-प्रवास के दौरान टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए वहां की सांस्कृतिक-राजनीतिक समस्याओं पर लेख और रिपोतार्ज लिखे। ‘माया दर्पण’ कहानी पर फिल्म बनी, जिसे 1973 का सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म पुरस्कार प्राप्त हुआ। निराला सृजनपीठ, भोपाल (1981-83) और यशपाल सृजनपीठ, शिमला, (1989) के अध्यक्ष। 1988 में इंग्लैंड के प्रकाशक रीडर्स इंटरनेशनल द्वारा कहानियों का संग्रह द वर्ल्ड एल्सव्हेयर प्रकाशित।

पुरस्कार/सम्मान :- कव्वे और काला पानी के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1985), सम्पूर्ण कृतित्व के लिए साधना सम्मान (1993), उ.प्र. हिन्दी संस्थान का सर्वोच्च राममनोहर लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान (1995), ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी पुरस्कार (1995) तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार (2000) सन् 1996 में यूनिवर्सिटी ऑफ ओकलाहोमा, अमेरिका की पत्रिका द वर्ल्ड लिटरेचर के बहुसम्मानित पुरस्कार न्यूश्ताद् अवार्ड के लिए भारत से मनोनीत किए गए।

कृतियाँ :-
उपन्यास :- वे दिन (1964), लाल टीन की छत (1974), एक चिथड़ा सुख (1979), रात का रिपोर्टर (1989) अन्तिम अरण्य।

कहानी-संग्रह :- परिंदे (1959), जलती झाड़ी (1965), पिछली गर्मियों में (1968), बीच बहस में (1973) :- (छुट्टियों के बाद, वीकएंड, दो घर, बीच बहस में।), मेरी प्रिय कहानियाँ (1973) :-(दहलीज़, परिन्दे, अंधेरे में, डेढ़ इंच ऊपर, अन्तर, लन्दन की एक रात, जलती झाड़ी।), प्रतिनिधि कहानियाँ (1988), कव्वे और काला पानी (1983), सूखा तथा अन्य कहानियाँ (1995)।, ग्यारह लम्बी कहानियां :- (परिन्दे, अँधेरे में, लन्दन की एक रात, पिछली गर्मियों में, बीच बहस में, दो घर, दूसरी दुनिया, सुबह की सैर, कव्वे और काला पानी, सूखा, बुख़ार।), दस प्रतिनिधि कहानियाँ।

यात्रा संस्मरण/डायरी/पत्र :- चीड़ों पर चाँदनी (1963), हर बारिश में (1970), धुंध से उठती धुन (1997), प्रिय राम, सर्जना पथ के सहयात्री।

निबन्ध :- शब्द और स्मृति (1976), कला का जोखिम (1981), ढलान से उतरते हुए (1985), भारत और यूरोप : प्रतिश्रुति के क्षेत्र (1991), इतिहास स्मृति आकांक्षा (1991), शताब्दी के ढलते वर्षों में (1995), आदि, अन्त और आरम्भ, दूसरे शब्दों में।

नाटक :- तीन एकान्त (1976)।

संचयन :- दूसरी दुनिया (1978)

अनुवाद :-  कुप्रिन की कहानियाँ (1955), रोमियो जूलियट और अँधेरा (1964), टिकट संग्रह (कारेल चापेक की कहानियाँ) (1966), इतने बड़े धब्बे (1966), झोंपड़ीवाले (1966), बाहर और परे (1967), बचपन (1970), आर यू आर (1972), एमेके एक गाथा (1973)।

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