जीवंत गीतों का मर्मरी उद्घोष " मीरा जनम जनम तक गाए गीत संग्रह में संग्रहीत 75 गीतों की ताकत यह है कि यह सभी मिलकर एक अनन्य गीतलोक का निर्माण कर देते हैं । इस गीत लोक में व्यष्टि से समष्टि की ओर तथा आत्मा से परमात्मा की ओर प्रीतपगी लय छन्द - बद्ध अर्थपोषित काव्य धारा प्रवाहित होती दिखती है । जैसे किसी उन्मुक्त सदानीरा सरिता को अपलक निहारने का सुख अवर्णनीय होता है , वही सुख मीरा शलभ के गीतों की गुनगुनाहट से मिलता है । गीत खुद यह बता देते हैं कि संसार की सभी आधि - व्याधि और दुखों का उपचार और निवारण प्रेम है । प्रेम ही कारण है और प्रेम ही निवारण भी है । इस संग्रह में संग्रहीत गीतों में हिन्दी साहित्य के लगभग 5 दशकों का प्रछन्न इतिहास खास तौर से साहित्य भाव धारा के गीत तत्व के आरोह अवरोह पर भी नजर डालना समीचीन होगा । इस प्रक्रिया को अपनाने से ही न केवल मीरा शलभ के गीत संग्रह " मीरा जनम जनम तक गाए " में संयोजित किये गये गीतों का महत्व और महनीयता समझ में आयेगी वरन हिन्दी गीत काव्य के साथ लड़ी गई एक तरफा अनय संघर्ष की बानगी भी सामने आयेगी । गीत साहित्य की वह विधा है जो समस्त काव्यों की जननी है । जब यह सृष्टि नहीं थी , प्रकाश की किरणें नहीं थी चारों ओर सिर्फ गहन तिमिर का साम्राज्य था , जीवन का नामो निशान भी नहीं था , पृथ्वी पर सिर्फ जल ही जल मौजूद था , न कोई कल्पना और न कोई कल्पना करने वाला मौजूद था । विद्वानों को चौंकाया तो वहीं उत्तर भारत के मिथिलांचल में विद्यापति के गीत ऐसे गूंजे की आज तक लोकमानस के कंठहार बने हुए हैं । इसके अलावा भी गीतों की अजस्त्र धारा में कितने ही ततयुगीन गीतधर्मी अपना उल्लेखनीय अवदान देते रहे हैं । गीतों का सबसे सहज और लोकव्यापी आयाम है लोकगीत । लोकगीत न केवल मन के उत्साह को समय - सयम पर प्राकृतिक उद्दीपनों की ओट से प्रकट करते रहे हैं वरन यह जनमानस के हर दुख - सुख , भाव - कुभाव को गाते रहे हैं । आज भी लोकगीत लोकमानस की सहज प्रवाहमयी अभिव्यक्ति का सबसे प्रमाणिक दस्तावेज हैं । भक्तिकाल में राधा - कृष्ण और सिया- राम के प्रति सर्मपित प्रेम की धारायें बह चलीं । यह राष्ट्रजागरण और सांस्कृतिक संरक्षण का सबसे कारगर माध्यम भी बनी रही । इस काल में महान संत गोस्वामी तुलसीदास , सूरदास , मीराबाई , रसखान जैसे वंदनीय कवियों का नाम आज भी उदाहरण के तौर पर लिया जाता है । इसी काल में सूफी संतों ने अपनी अलग प्रेम गीत धारा को प्रवाहित किया । इस काल में ज्यादातर कवियों ने समर्पण भाव से अपने ईश के प्रति अपने परम पद के लिए अपनी रचनाओं का प्रसाद चढ़ाया , जिन्हें गाकर आज भी भक्त और सहृदय जन भाव विभोर हो रहे हैं । आधुनिक हिन्दी साहित्य का अभ्युदय भारतेंदु युग से माना जाता है । इसी काल से देश की आजादी का महासंग्राम प्रारम्भ हो गया था । उस काल के रचनाकारों ने देश काल की जरूरत को भांपते हुए और आजादी के महत्व और मूल्य को स्थापित करने के लिए देश प्रेम की रचनाओं का सृजन तथा गान किया । छायावाद युग में महाकवि जयशंकर प्रसाद ने तो कामायनी जैसा महाकाव्य लिख कर प्रेम और करूणा के एक रूमानी माया लोक का निर्माण कर दिया । वहीं प्रेम और करूणा की मूर्ति महीयसी महादेवी वर्मा ने प्रकृति के माध्यम से अपने अंतर की पीर को अनंत ऊंचाईयों तक पहुंचा कर हिन्दी के पाठकों को विभोर कर दिया । गीतों के साथ जो नहीं चल पाये उन स्वनाम - धन्य , स्वयं - भू आलोचकों ने देशी दवाखाना के नुस्खों की मीरा जनम - जनम तक गाये। रूप दिखने लगा । गीत शब्द , ध्वनि , लय , ताल , छंद बद्धता , भाव प्रवणता यह सब स्मरण होते गये । पुराण काल आते - आते गीत पूरी तरह से काल के माथे पर चस्पा हो चुके थे । मनुष्य का सांसारिक सरोकार गीतों के साथ रच बस गया था । एक ही उदाहरण काफी होगा कि महाभारत के युद्ध में जब रक्त पात की शुरूआत हो चुकी थी , दो मानव गुण - धर्म अपने - अपने अस्तित्व के लिये परस्पर एक - दूसरे को समाप्त कर देने का प्रण लेकर आमने - सामने आ गए थे , तब लड़ने के पहले दुनियावी रिश्तों के मोहजाल में फंसे अर्जुन को लीला अवतार लोक रंजक श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में जो ज्ञान दिया और जीवन का भाव बोध कराया उसे सृजन शिरोमणि कृष्ण द्वैपायन महर्षि व्यास ने गीत की कुलीनता से जोड़ते हुए ' गीता ' नाम दिया । गीता ईश्वर का मनुष्य के प्रति उद्बोधन माना जाता है । श्री कृष्ण स्वयं गीता में कहा कि " गीतोहं सामवेदानी " । श्रीमद्भागवत महापुराण के दशवें स्कंद में गोपी गीत और उसके साथ चार अन्य गीतों का वैशिष्ठय कुंठित मानव हृदय को भी रस सिक्त कर जाता है यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि मीरा शलभ के " मीरा जनम जनम तक गाए " संग्रह के गीतों का गोत्र और प्रवर वही है जो श्रीमद्भागवत महापुराण के गोपी गीत का है । पुराणकाल के बाद जब हिन्दी भाषा का भक्तिकाल आया तो उसके पहले संस्कृत के महान कवि कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम , कुमार संभव और मेघदूत जैसे प्रबंध काव्यों की रचना कर प्रेम के संयोग और वियोग दोनो रूपों की प्रतिष्ठा कर दी थी । इतना ही नहीं बाणभट्ट जैसे संस्कृत के महान लेखक ने विश्व साहित्य के प्रथम उपन्यास कादंबरी में प्रेम के उदात्त रूप का अदभुत समायोजन किया । उसके बाद दक्षिण भारत के कृष्ण भक्त कवि जय देव ने गीत गोविंद जैसे अलौकिक गीत संसार की रचना कर न केवल देश वरन दुनिया के,