शिप्रा का पानी (Hindi Sahitya): Shipra Ka Pani

· Bhartiya Sahitya Inc.
4,3
41 komente
Libër elektronik
112
Faqe
I përshtatshëm

Rreth këtij libri elektronik

आमुख


जिन लोगों ने मेरी पहली किताब "वैनिटी बैग" पढ़ी है, उन्हें पता है कि मैंने हमेशा अपने पाठकों से कहा है कि आमुख पढ़कर अपना समय बर्बाद न करें। मगर कुछ लोग ज़िद्दी होते हैं। उन्हें अंतर नहीं पड़ता कि सामने वाला क्या कह रहा है, वो तो बस अपनी राइम स्कीम में ही काम करते हैं। तो ऐसे पाठकों और नॉन-पाठकों को मैं बता दूँ कि मैं भी बहुत ज़िद्दी हूँ, इनफैक्ट ढीठ हूँ। मुझे भी अंतर नहीं पड़ता कि लोग मेरे पीठ पीछे मेरी क्या आलोचना करते हैं। मैं सबको सुनता हूँ, फिर अपने घर जाता हूँ, एक कप चाय पीता हूँ और फिर वही करता हूँ जो मेरे मन का होता है। बहुत लोगों ने मुझसे कहा है कि व्यंग्य थोड़ा ज्यादा तीखा हो रहा है। अब उन्हें मैं कैसे समझाऊँ कि मैं कुछ लिखने बैठा हूँ, सब्ज़ी बनाने नहीं, जो नाम तौल कर उसमे शब्द और अक्षर डालूँ। मेरे व्यंग्य जितना आपको चुभते हैं, उतना ही मुझे भी। पर मेरा काम, एक लेखक के तौर पे, आपको ये बताना है कि क्या गलत हो रहा है और क्या सही। गलत को सही करना और सही की प्रशंसा करना, मेरा काम नहीं है। ये काम आप लोगों को करना चाहिये। मुझे, लेखक के तौर पे बस लिखने दीजिये।

पहली किताब के छपने के बाद जब मैंने दो-चार बधाइयाँ और 6-7 आलोचनाएं सुनीं, तो मुझे ये भ्रम हो गया कि मैं अब लेखक हो रहा हूँ या होने की प्रक्रिया में हूँ। इसी भ्रम में मैंने ये दूसरी किताब लिखी है और अभी इसका आमुख टाइप कर रहा हूँ। इसकी कहानियों की बात करें तो "शिप्रा का पानी" मेरी कुछ उन कहानियों में से एक है जिसके सारे पात्र और दृश्य मानो मेरे सामने एक जीवंत अनुभव हों। वृंदा मानस का हाथ पकड़े जब उज्जैन के रामघाट पे दौड़ती है तो मन करता है मानो कहानी में जाकर उसी घाट के एक किनारे पर बैठ जाएँ और बस उन दोनों को देखते रहें और उनकी बातें सुनते रहें। उज्जैन की हवा, वृंदा का रूप और मानस का मन, इन तीनों के बीच घूमती रहती है ये कहानी....।

वैसे आपको एक बात बताऊँ, जब मेरी कहानियों में व्यंग्य नहीं होता तो ऐसे ही पात्र और किस्से होते हैं, जैसे इस कहानी में हैं। उज्जैन के रामघाट से निकलकर जब मैं दूसरी कहानी में झाँकता हूँ तो हादिया की नज़र से देखता हूँ, कश्मीर की खूबसूरत वादियाँ, झील, शिकारे की सैर, बर्फ़ से ढके पहाड़, रबाब की धुन, पश्मीना की शॉल, पुलाव, सेव, रोगन जोश और इन सबसे खूबसूरत वहाँ के लोग। अपनी फूल सी बेटी के सपनों को पूरा करने में जो बाप की कोशिशें हैं, वो देखना हो तो “बर्फ़” के पन्नों को पलटने की कोशिश कीजियेगा।

अच्छा आपने सरकारी दामाद का नाम सुना है क्या। सुना ही होगा। सुना नहीं तो देखा जरूर होगा। ६०-७०% सरकारी दामाद अपने गेटअप और चाल चलन से ही पहचान में आ जाते हैं। बड़े चेक वाली शर्ट, फुल बाँह किये हुए, बाकायदा लेदर की बेल्ट, सियाराम या विमल का प्लेट वाला ट्राउज़र, श्रीलेदर या बाटा का फीते वाला जूता, सोनाटा या टाइटन की घड़ी, एक दो ग्रहों वाली अँगूठी और शर्ट की अगली पाकिट में रेयोनोल्ड या जेटर की एक पेन। ऐसे सरकारी लड़के को अपना दामाद बनाने के लिए एक संस्कारी लड़की के बाप की जो ज़द्दोज़हद है, वही “सरकारी लड़का” कहानी का आनंद है। ट्रेन का सफर, साइड लोअर बर्थ, कॉलेज की पुरानी यादें और एक अधूरी कविता जिस कहानी में पूरी होती नज़र आती है उसी का नाम है “साइड लोअर।” यंग जनरेशन इसे मिस मत कीजियेगा।

“जैसा माँ और नानी कहानियों में बताती हैं न राजकुमार के किस्से। बड़ी-बड़ी आँखें, लंबा चौड़ा कद और मन लूटने वाली मुस्कान; बस फर्क इतना था कि राजकुमार घोड़े पे आते हैं और ये लड़का गाड़ी में बैठकर आया है। जहाँ सबकी नजरें लड़के से हट नहीं रही थीं वहाँ दूसरी ओर सुमन अपनी माँ को जोरों से पकड़ के खड़ी थी।“

आपको समझाने की जरूरत नहीं कि सुमन को घर पे लड़के वाले देखने आये हैं। पर क्या ख़ास है इस रिश्ते में जिसने सुमन की चिंता और परेशानी बढ़ा दी है। क्या सचमुच ये सुमन के लिए आया "आखिरी रिश्ता" है? पढ़िए और मुझे बताइयेगा जरूर। इस गंभीर कहानी से निकलने के बाद अगर मन थोड़ा हल्का करना हो तो, विजय नगर कॉलोनी के दो नंबर रोड में घुसते ही, जो चार मकान छोड़कर एक मैदान है आप वहाँ इकठ्ठा हो जाइये। अरे भाई आपको किसी ने बताया नहीं। वहाँ सरस्वती पूजा की तैयारियाँ जोरों से शुरू हो गयी हैं। नौजवान लड़के, कॉलोनी में आये नए किरायेदार, पूजा का माहौल और हर ओर माँ सरस्वती के जयकारे .... ये सब कुछ चल रहा है इस कहानी में। कौन सी वाली। अरे वही "सरस्वती माता की जय हो"।

मैंने हमेशा से ये कोशिश की है कि मेरी किताबों में मिक्स फ्लेवर की कहानियाँ हों जो हर आगे ग्रुप को सूट करें और जिनमें सब कुछ हो हास्य, व्यंग्य, ट्रेजेडी .... सब कुछ। “तेरह सत्ते” में क्या है, ये मैं पूरा डिसाइड नहीं कर पाया हूँ। पर हाँ जब आरव को पहाड़ों में फँसते हुए देखता हूँ तो अपने बच्चों वाले दिन जरूर याद आ जाते हैं। याद है न 13, 17 और 19 के पहाड़े। आपको याद होंगे, पर आरव से वही याद नहीं होते थे। तो क्या करे बेचारा आरव। चलिए न, चलकर देखते हैं आरव की ये कहानी, "तेरह सत्ते"। यहाँ से थोड़ा और आगे बढ़ें तो गाँव में पाठक जी के घर पे होली की तैयारियाँ ज़ोर शोर से शुरू हो गयी हैं। मेहमानों का आना लगा हुआ है, पकवानों की तैयारियाँ चल रही हैं और मेन रोड पे शहर से उतरने वाले रिश्तेदार और बेटे अपने ही घर का रास्ता दूसरों से पूछ रहे हैं। इन सब के बीच पिहू , किया, मंगल और काशी के बीच जो कहानी घूमती है उसी का नाम है "होली का बकरा"। वैसे, गाँव से याद आया, आप (पाठक को इशारा है) आखिरी बार अपने गाँव कब गए थे? नहीं गए थे, तो जाते रहिये। और कुछ नहीं तो इंस्टाग्राम और फेसबुक पर पोस्ट करने के लिए कुछ मजेदार फोटो ही खींच कर ले आइयेगा। मैं तो ऐसे लोगों को भी जानता हूँ, जो पाँच साल में एक बार अपने गाँव जाने का समय निकाल पाते हैं। आपको पता है... दरअसल वैसे लोगों ने ही "गाँव की मिट्टी" को धूल और डस्ट बोलकर हम लोगों को और आने वाले पूरे जनरेशन को कंफ्यूज कर रखा है।

मेरी अगली कहानी आलोक जी (मुख्य पात्र) और उनके "भाड़े का सूट" के बीच में फँसी हुई है। मैं ये नहीं कहता कि ऊँची महत्वाकांक्षा रखना कोई पाप या जघन्य अपराध है, मगर सूट के लिए!!! बिलकुल सूट नहीं करता। जरूरत या मजबूरी रोटी की हो सकती है, बदन ढँकने लायक कपड़े की हो सकती है या सर के ऊपर एक छत की हो सकती है, चलिए मैं तो कहता हूँ कि शिक्षा की भी हो सकती है.... मगर सूट के लिए ऐसी क्या मजबूरी कि उसे भाड़े पे लिया जाए और लेके पहना भी जाए।!! आलोक जी के घर से कुछ दूरी पे जो अनुभव जी रहते हैं (हाँ, हाँ, वही जिनकी बेटी पूर्णिमा की शादी अभी हाल में हुई है) वो मेरी अगली कहानी, “शर्ट की क्रीच” के मुख्य पात्रों में से एक हैं। पूर्णिमा के लिए विवेक जी का प्यार और उसके ससुराल वालों के सामने उनके संकोच वाले भाव ने इस कहानी को थोड़ा इमोशनल बना दिया है।

इस इमोशनल ड्रामा से अपने आप को खींचकर जब बाहर निकालता हूँ तो कहानी पहुँचती है राधे पान भण्डार के पास जिसके बैनर तले, एक फ्लॉप आइटम गर्ल पर फिल्माए गए हिंदी फ़िल्म के एक हिट गाने का रीमिक्स वर्जन चल रहा है और मैं सोच रहा हूँ कि अशिक्षित कौन है, ये पानवाला, वो सीडी बेचने वाला, वो आइटम गर्ल, या वो दूसरा लड़का जिसने अपनी फ़रमाइश पे ये गीत चलवाया है। ये उन्हीं मौकों में से एक है जहाँ लोगों को पता ही नहीं होता है कि “कहें क्या”!! और अगर तुक्के से ये पता भी चल जाए कि कहना क्या है तो दूसरी सबसे बड़ी समस्या ये आती है कि “आखिर कहें भी तो किस से कहें”!! मेरी ये कहानी (या जो भी कहिए) इस दूसरे वाले मुद्दे पर ही केंद्रित है कि आखिर, कहें भी तो "किस से कहें

एक और कहानी है इसी किताब में। पेज नंबर मुझे याद नहीं मगर हाँ, कहानी है मजेदार। भगवान् कसम खा के बताइयेगा, कि आपने टीवी पर एक बार भी रामायण देखी है या नहीं। मेरा मानना है कि अपने देश में हर किसी ने एक न एक बार टीवी पर रामायण जरूर देखी है। नतीजन, रामायण की कहानी और इसके किरदार हम सबके माइंड में ऐसे फिट हो गए हैं कि अगर सपने में भी राम जी के दर्शन हों तो वो टी.वी. सीरियल वाले कैरेक्टर का ही चेहरा नजर आता है। रामायण की कहानी और उसके पात्रों को जब एक लेखक होने के नाते मैंने प्रैक्टिकल लाइफ में उतारने या ढालने की कोशिश की तो मेरा बीपी बढ़ गया और यकीन मानिये, उसी टेंशन में ये कहानी लिख डाली जिसे आप "टीवी वाली रामायण" नाम से इसी किताब में खोज सकते हैं।

तो मिला जुला के इतना कुछ है इस किताब में और जो नहीं है वो इसलिए नहीं है क्यूँकि मैंने उन्हें आगे छपने के लिए दिया नहीं है। पर आप थोड़ा सब्र रखिये। कुछ दिन इन कहानियों में घूमिये, इनके पात्रों को अपने आसपास खोजिये, उनसे बातें कीजिये और मौका मिले तो उन्हें ये भी बताइयेगा कि वो मेरी कहानियों के चेहरों से कितना मिलते जुलते हैं। इस प्रोसेस में दो फायदे हैं। पहला, आप मेरी कहानियों को रियल लाइफ से रिलेट कर पाएंगे और दूसरा, मेरी कहानियों और मेरी किताबों का प्रचार हो जाएगा। आप इसे मेरी रिक्वेस्ट समझें, उस फ़ोन वाले मैसेज की चेतावनी नहीं, जिसमें लिख के आता है न "कि अगर इस मैसेज को आगे दस लोगों को फॉरवर्ड नहीं किया तो भगवान आपके साथ आज कुछ बुरा करेंगे।"


- अभिषेक आनन्द


Vlerësime dhe komente

4,3
41 komente

Rreth autorit

जन्म - 29.01.1985, दरभंगा, बिहार।

माता - श्रीमती अंजु कुमारी वर्मा

पिता - श्री निर्मल कुमार वर्मा

शैक्षणिक योग्यता - बी.टेक ।


आदित्य बिरला ग्रुप में सीनियर इंजीनियर के पद पर कार्यरत ।


उपलब्धियाँ -

ऑल इंडिया रेडियो तथा प्रमुख दैनिक पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ, गीत-गज़लें प्रचारित व प्रसारित ।


प्रकाशित कृतियाँ -

वैनिटी बैग (कहानी-संग्रह)


सम्पर्क :

तिलकनगर, रोड नं -1, रूकनपुरा,

पटना, बिहार, पिन -800014

दूरभाष - 9669200651

Vlerëso këtë libër elektronik

Na trego se çfarë mendon.

Informacione për leximin

Telefona inteligjentë dhe tabletë
Instalo aplikacionin "Librat e Google Play" për Android dhe iPad/iPhone. Ai sinkronizohet automatikisht me llogarinë tënde dhe të lejon të lexosh online dhe offline kudo që të ndodhesh.
Laptopë dhe kompjuterë
Mund të dëgjosh librat me audio të blerë në Google Play duke përdorur shfletuesin e uebit të kompjuterit.
Lexuesit elektronikë dhe pajisjet e tjera
Për të lexuar në pajisjet me bojë elektronike si p.sh. lexuesit e librave elektronikë Kobo, do të të duhet të shkarkosh një skedar dhe ta transferosh atë te pajisja jote. Ndiq udhëzimet e detajuara në Qendrën e ndihmës për të transferuar skedarët te lexuesit e mbështetur të librave elektronikë.