पौराणिक कथाएँ (Hindi Sahitya): Pauranik Kathayen (Hindi Stories)

·
Bhartiya Sahitya Inc.
4.2
36 reviews
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वेद-पुराण हमारी संस्कृति के संवाहक हैं तथा हमारी समृद्ध धरोहर भी। पुराण एक तरह से इतिहास-ग्रन्थ ही हैं। इनमें विभिन्न महत्त्वपूर्ण घटनाओं, राजाओं-महाराजाओं, ऋषियों-महर्षियों, देवताओं, असुरों आदि की कथाएँ भरी पड़ी हैं। किसी विशेष देवता के नाम पर कोई पुराण है तो उसमें उसी देवता सम्बन्धित कथाओं और अन्तर कथाओं का वर्णन प्राप्त होता है, जैसे शिव पुराण में शिव से सम्बन्धित घटनाओं का उल्लेख मिलेगा तो मार्कण्डेय पुराण में मूलतः देवी की कथा प्राप्त होती है।

ऐसे ग्रन्थ और किसी भाषा या देश में उपलब्ध नहीं हैं। ज्ञान-विज्ञान से पूर्ण इन ग्रन्थों के कारण ही भारत को विश्व-गुरु की उपाधि प्राप्त थी।

अफ़सोस की बात है कि आज हम अपने इन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों से अपरिचित होते जा रहे हैं। पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से प्रभावित नई पीढ़ी को तो इन उपयोगी तथा बहुमूल्य ग्रन्थों से कोई लेना-देना ही नहीं रहा। यही कारण है कि आज वह पूरी तरह दिग्भ्रमित हो रही है। उच्चतर मानवीय मूल्यों के प्रति उसमें कोई आस्था नहीं रह गई है। बुजुर्गों यहाँ तक कि माता-पिता के प्रति भी उनकी श्रद्धा समाप्त हो गई है। फलतः परिवारों का विखण्डन हो रहा है। परिवार के वृद्ध और वृद्धाएँ वृद्धाश्रमों में रहने को विवश हो रहे हैं। इस पुस्तक के लेखन के मूल में ये सारी समस्याएँ ही हैं। नई पीढ़ी को अपने संस्कार और संस्कृति से परिचित कराना ही इसका उद्देश्य है। उच्चतर जीवन-मूल्यों को समर्पित हैं ये पौराणिक कहानियाँ।

Ratings and reviews

4.2
36 reviews
Anandsinh Gohil
February 25, 2021
my amount debited but still book fully not download cheating by Google play books to me
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Mukesh Juglan
July 5, 2018
Brilliant book I love most this type of books
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Priya Thakur
March 24, 2021
this app so amzing so nice story i like it
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About the author

स्वामी राम सुखदास

(1904 - 3 जुलाई 2005)

भारतवर्ष के अत्यन्त उच्च कोटि के विरले वीतरागी सन्यासी थे। वे गीताप्रेस के तीन कर्णाधारों में से एक थे। अन्य दो हैं- श्री जयदयाल गोयन्दका तथा श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार ।

परिचय

स्वामी रामसुखदास जी महाराज का जन्म श्री रूघाराम जी पिडवा ग्राम माडपुरा जिला नागौर के यहाँ माघ शुक्ला त्रियोदशी सन् 1904 मे हुआ। उनकी माता कुन्नीबाई के सहोदर भ्राता श्री सद्दाराम जी रामस्नेही सम्प्रदाय के साधु थे।

4 वर्ष की आयु मे ही माताजी ने राम सुखदासजी को इनके चरणो मे भेट कर दिया। किसी समय स्वामी कान्हीराम जी गांवचाडी ने आजीवन शिष्य बनाने के लिए आपको मांग लिया। शिक्षा दीक्षा के पश्चात वे सम्प्रदाय का मोह छोडकर विरक्त (संन्यासी) हो गये और उन्होंने गीता के मर्म को साक्षात् किया और अपने प्रवचनो से निरन्तर अमृत वर्षा करने लगे। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा संचालित समस्त साहित्य का आप वर्षो तक संचालन करते रहे। आपने सदा परिव्राजक रूपमें सदा गाँव-गाँव, शहरोंमें भ्रमण करते हुए गीताजीका ज्ञान जन-जन तक पहुँचाया और साधु-समाजके लिए एक आदर्श स्थापित किया कि साधु-जीवन कैसे त्यागमय, अपरिग्रही, अनिकेत और जल-कमलवत् होना चाहिए और सदा एक-एक क्षणका सदुपयोग करके लोगोंको अपनेमें न लगाकर सदा भगवान्‌में लगाकर; कोई आश्रम, शिष्य न बनाकर और सदा अमानी रहकर, दूसरोकों मान देकर द्रव्य-संग्रह, व्यक्तिपूजासे सदा कोसों दूर रहकर अपने चित्रकी कोई पूजा न करवाकर लोग भगवान्‌में लगें ऐसा आदर्श स्थापित कर गंगातट, स्वर्गाश्रम, हृषिकेशमें आषाढ़ कृष्ण द्वादशी वि.सं.2062 (दि. 3.7.2005) ब्राह्ममुहूर्त में (3 बजकर 40 मिनिट) भगवद्-धाम पधारे।

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