हल्दी के छापे (Hindi Sahitya) Haldi Ke Chhape (Hindi Poetry)

· Bhartiya Sahitya Inc.
E-knjiga
144
str.
Ispunjava uvjete

O ovoj e-knjizi

अपने गीतों के बारे में 

  अपने ही गीतों के बारे में कुछ कहना मुझे कभी नहीं रुचा. हाँ, इतना अवश्य कहूँगा कि बचपन में गाँव के लड़कों के साथ दौड़ते हुए जब बाँसुरी की बहुत दूर से आती मोहक धुन सुनकर मैं दौड़ना भूल गया था तभी मेरे भीतर गीत ने जन्म लिया था. इसके बाद तो उस धुन को मैंने कहाँ नहीं खोजा, रामायण की चौपाइयों में, चौपालों की लोकधुनों में, धान रोपती औरतों की स्वर लहरियों में, धान के खेतों में, पोखरों के जल में, ताल की मछलियों में, मन्दिरों की घँटियों में, मेलों में, त्योहारों में, आँखों में, देह में, आँगन की भीड़ में, महावर में, पायल में, तुलसी चौरे पर, आँसू में, सुहास में, भूख की पीड़ा में, जीवन की विसंगतियों में, बिखरते घरों में और टूटते सम्बन्धों में. कहाँ-कहाँ भटका रहा है गीत-संगीत कब तक भटकायेगा पता नहीं. लेकिन यह भटकन ही मुझे उन क्षणों से जोड़े हुए है जिनमें मेरा मन रमता है. 

जीवन के उतार-चढ़ाव, संघर्षों तथा विसंगतियों के बीच भी जो जिजीविषा सुरक्षित बची रह गयी है वह संभवतः गीतों के कारण ही बची है. घर-परिवार और सामाजिकता का जुआ मेरे कंधों में तभी कस गया था जब पैरों में उस जुये को सँभालने की शक्ति भी नहीं आयी थी. लेकिन मैंने हार कभी नहीं मानी. जुये को साधे हुए ही मैंने अपने कमजोर पैरों के लिए शक्ति अर्जित की. घर-परिवार और सामाजिकता का बोझ ढोता रहा. अपनी आँखें मैंने हमेशा खुली रखीं और संवेदना के जल-स्रोतों को कभी सूखने नहीं दिया. आज भी किसी के सुख में भीतर तक आनंदित होना, और किसी के दुख में गहरे तक उतर कर पीड़ा को आत्मसात करना मेरी कमजोरी भी है और मेरी शक्ति भी. 

मैंने भी अपना जीवन गाँवों से शहरों में आए उन करोड़ों लोगों की तरह जिया है जिनके पाँवों में शहरों के संघर्ष तथा गाँवों के मोह एवं परिवार के संस्कारों की दोहरी जंजीर कसी हुयी है. इसीलिए मेरे गीतों में यह अन्तर्द्वन्द्व बार-बार उभरा है. मैंने किसी वाद या प्रतिबद्धता में रचनाएं नहीं लिखी हैं. ये रचनाएँ मेरे पूरे जीवन के अनुभवों एवं आसपास की पीड़ा एवं उत्फुल्लता दोनों को शब्दों में बाँधने का प्रयास भर हैं. 

गीत मेरे लिए भीतर की संवेदना को, भीतर के रस को भीतर के आनन्द को और भीतर की पीड़ा को यथावत गा देना भर हैं. मैं नहीं जानता कि इन गीतों को, इन कविताओं को कौन सा नाम दिया जायेगा या किन कसौटियों पर इन्हें परखा जायेगा. मैं इतना जानता हूँ कि जिन संस्कारों को मैंने जिया है, जिन रस भरे क्षणों की यादें हैं, उन्हें किन्हीं भी शब्दों में, प्रतीकों में, स्वरों में, यति में, गति में या कैसे भी लोगों तक पहुँचा सकूँ तो यही मेरे गीतों की उपलब्धि होगी.

मेरे ऊपर मित्रों का दबाव बहुत दिनों से था कि मैं अपना संकलन निकालूँ. लेकिन किसी न किसी कारण से यह टलता ही गया. अगस्त ९२ में मैं गंभीर रूप से बीमार हुआ और गहन निराशा के क्षणों में अन्य दुःखों के साथ मैंने यह दुःख भी बड़ी गहराई से भोगा कि मैं अपने गीतों का, कविताओं का, संकलन नहीं निकाल पाया. मैं आभारी हूँ संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान लखनऊ के प्रतिभा सम्पन्न डाक्टरों का जिन्होंने मुझे मौत के मुख में जाने से बचा लिया. इसके लिए मैं डा० अनन्त कुमार, डॉ० जी०चौधरी, डॉ० वी०के०कपूर और डॉ० दीपक अग्रवाल का विशेष रूप से आभारी हूँ. उन दिनों की पीड़ा को मैंने शब्दों में बाँधा है और अपने इसी संकलन में मैंने वह कविता भी दे दी है

इस संकलन में ही गीतों के अतिरिक्त मेरी कुछ अन्य रचनाएं भी हैं जिन्हे समय-समय पर मैंने रचा है और गीतों के इस संकलन में ही दे देने के मोह का संवरण नहीं कर पा रहा हूँ.

मैं आभारी हूँ परम् आदरणीय श्री ठाकुर प्रसाद सिंह का जिन्होंने अपनी अस्वस्थता के बीच भी कुछ क्षण मुझे आशीर्वाद देने के लिए निकाले. साथ ही मैं भाई अमरनाथ श्रीवास्तव एवं भाई शतदल का भी आभारी हूँ, जिन्होंने मेरे गीतों के बारे में लिखा.

अन्त में मैं अपने मित्र श्री लालता प्रसाद सिंह, जिन्होंने मुझे अध्यवसाय विवेक संवेदना और स्पष्टता का संस्कार दिया, का विशेष आभार मानता हूँ तथा अपने मित्रों श्री मेवाराम एवं श्री शिवकिशोर सिंह के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहूँगा जिन्होंने मेरी एक-एक रचना कई-कई बार सुनी और मुझे बार-बार संकलन निकालने के लिए प्रेरित करते रहे. 

- अवध बिहारी श्रीवास्तव 


O autoru

पूरा नाम - अवध बिहारी लाल श्रीवास्तव

जन्म - 01 अगस्त, 1935

माँ - स्व. श्रीमती सुखदेई देवी

पिता - स्व. बंशीधर लाल श्रीवास्तव

जन्म स्थान - ग्राम व पो.- अनेई, जिला-वाराणसी (उ.प्र.)

शिक्षा - एम.काम., एम.ए (अर्थशात्र)

प्रकाशित साहित्य

गीत-संग्रह : हल्दी के छापे (सन् 1993)

मण्डी चले कबीर (सन् 2012)

बस्ती के भीतर (सन् 2017)

अन्यान्य - देश की सभी प्रमुख व विभिन्न स्तरीय पत्रिकाओं में गीतों का निरन्तर प्रकाशन। अनेक समवेत् संकलनों में चयनित।

आकाशवाणी के सर्वभाषा कवि सम्मेलन में हिन्दी कवि के रूप में भागीदारी (नागपुर केन्द्र-वर्ष 2008)

आलोचना- साहित्य-संवाद केन्द्र में उद्भ्रांत

विशेष - व्यक्तित्व कृतित्व पर एकाग्र ग्रन्थ ‘नवगीत के प्रेमचन्द - अवध बिहारी श्रीवास्तव’ श्री वेद शर्मा व डा.शेफाली शर्मा द्वारा सम्पादित

सम्प्रति -

जिला सहायक निबन्धक सहकारी समितियाँ (उ.प्र.) के पद से 1993 में सेवानिवृत्त। अब स्वतन्त्र लेखन।

सम्पर्क -

एच-2/37, कृष्णापुरम, कानपुर-208007

मो. 9450760764, 6394906385

Ocijenite ovu e-knjigu

Recite nam što mislite.

Informacije o čitanju

Pametni telefoni i tableti
Instalirajte aplikaciju Google Play knjige za Android i iPad/iPhone. Automatski se sinkronizira s vašim računom i omogućuje vam da čitate online ili offline gdje god bili.
Prijenosna i stolna računala
Audioknjige kupljene na Google Playu možete slušati pomoću web-preglednika na računalu.
Elektronički čitači i ostali uređaji
Za čitanje na uređajima s elektroničkom tintom, kao što su Kobo e-čitači, trebate preuzeti datoteku i prenijeti je na svoj uređaj. Slijedite detaljne upute u centru za pomoć za prijenos datoteka na podržane e-čitače.