कथा एवं कहानी दोनों पर्यायवाची होते हुए भी इनके अर्थ में सूक्ष्म अंतर आ जाता है। “उपन्यास और कहानी में दिखायी देने वाला रूपगत अंतर बहुत स्पष्ट होता है, फिर भी दोनों के बीच का अंतर स्थिर नहीं होता। आकार में बहुत छोटी होते हुए भी कहानी उन सीमाओं का स्पर्श करती रहती है, जिनमें उपन्यास की संरचना विकसित हो सकती है। उपन्यास में अंततः एक कहानी होती है। दोनों में अंग-अंगी का संबंध भले न हो किंतु एक ही पारिवारिक संबंध में वे अवश्य बंधे है। दोनों का फर्क महत्वपूर्ण तभी होता है, जब दोनों प्रतिबिंबित प्रविधि के कारण अलग-अलग दिखायी देने लगते है। ”कहानी के व्यापक रूप में जहाँ उपन्यास का समावेश हुआ, वही कहानी के सूक्ष्म रूप के अंतर्गत लघु-कथाओं को लिया जाता है।
कहानी में लेखक के मनोभावों और विचारों का प्रमाण मिलता है। कहानी उतनी ही प्राचीन है जितनी की मानव सृष्टि। गद्य साहित्य के एक अन्यतम भेद के रूप में कहानी लोकप्रिय साहित्य का रूप है। विकास एवं परिवर्तन मानवी सभ्यता में जिस तरह गतिवान हुआ उतनी ही गति से विकास एवं परिवर्तन को कहानी साहित्य में भी दिखाई देते है।