जीवानंद ने महेंद्र को सामने देखकर कहा; ‘‘बस; आज अंतिम दिन है। आओ; यहीं मरें।’’ महेंद्र ने कहा; ‘‘मरने से यदि रण-विजय हो तो कोई हर्ज नहीं; किंतु व्यर्थ प्राण गँवाने से क्या मतलब? व्यर्थ मृत्यु वीर-धर्म नहीं है।’’ जीवानंद- ‘‘मैं व्यर्थ ही मरूँगा; लेकिन युद्ध करके मरूँगा।’’ कहकर जीवानंद ने पीछे पलटकर कहा; ‘‘भाइयो! भगवान् के नाम पर बोलो; कौन मरने को तैयार है?’’ अनेक संतान आगे आ गए। जीवानंद ने कहा; ‘‘यों नहीं; भगवान् की शपथ लो कि जीवित न लौटेंगे।’’ —इसी पुस्तक से
‘आनंद मठ’ बँगला के सुप्रसिद्ध लेखक बंकिमचंद्र चटर्जी की अनुपम कृति है। स्वतंत्रता संग्राम के दौर में इसे स्वतंत्रता सेनानियों की ‘गीता’ कहा जाता था। इसके ‘वंदे मातरम्’ गीत ने भारतीयों में स्वाधीनता की अलख जगाई; जिसको गाते हुए हजारों रणबाँकुरों ने लाठी-गोलियाँ खाइऔ और फाँसी के फंदों पर झूल गए। देशभक्ति का जज्बा पैदा करनेवाला अत्यंत रोमांचक; हृदयस्पर्शी व मार्मिक उपन्यास।
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