बचपन से ही मुझे जो चहिये होता था, वो मुझे मिल जाता था। पर कहीं न कहीं ये लगता था कि सब कुछ मिलेगा, जो में चाहता हूँ। वैसे तो मै एक मध्यवर्गी परिवार से हूँ। जहाँ हमेशा जरुरत ही पहले पूरी होती है, शौक नहीं। मुझे नवोदय विद्यालय में पढ़ने का मौका मिला। जहाँ मैंने 2010 से लेकर 2017 तक पढाई की। जहाँ मुझे कुछ खास दोस्त मिले, जिनके साथ उम्र भर की दोस्ती। हमने अपनी जिंदगी के बेहतरीन पल वहाँ बिताए। पाबंदियों में रह कर भी खुद को हीरे की तरह निखारा। मेरा लिखने की वजह भी नवोदय ही है। कुछ हसीं पल मिले कुछ हसीं जज्बात, और जिंदगी जीने का सबक। मैं कोई टोपर नहीं हूँ, या यूँ कहें तो मी बैक बेंचेर था, लास्ट सीट पर कब्ज़ा किये हुए था| पढ़ने के साथ खेल में भी कुछ सिखा दिया, टेबल टेनिस, हॉकी, वॉली बॉल और भी कई खेल| साइंस प्रोजेक्ट भी ले जाने का मौका मिला| NCSE (नेशनल चिल्ड्रन एंड साइंस कांग्रेस) -2015 में नवोदय विद्यालय साइंस एक्सहिबिशन 2016 में मुझे जाने का मौका मिला| (2nd stage) सबकी तरह मेरा भी सपना था इंजीनियरिंग का…… 2017 मई JEE MAINS में असफलता के बाद , फिर से उठ खड़ा हुआ। 2018 में JEE MAINS के पेपर में सफल हो गया, पर रैंक इतनी ज्यादा थी, की कोई कालेज एड्मिसन तो दूर अंदर तक ना जाने देता। पर थोड़ी और मशक्कत की JEE एडवांस में बेहतरीन तरीके से ऊपर आया, साथ ही UPTU की भी परीक्षा दी थी। इस में जनरल रैंक 1569 आई। सब बहुत खुश हुए मेरी इस सफलता को लेकर। मुझे भी खुशी थी, खैर इंजीनियरिंग में एड्मिसन लेने के बाद मुझे लगा कि लिखना भी चाहिए। इलाहाबाद में ही रह कर पढाई करने क विचार पहले से ही मन में बना लिया था। नवोदय का इतना कर्ज है की शायद कभी इससे उभार भी न पाऊँ। ये उपन्यास नवोदय के नाम। - शिवाकान्त कुशवाहा