Aahista

Sankalp Publication
4,9
9 arvustust
E-raamat
106
lehekülge

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यह कहानी है हर उस हॉस्टल की जहाँ मोहब्बत हर ईंट में बसती है। जहाँ दोस्ती की नई मिशालें बनती है। “आहिस्ता… यारों की टोली ” इसका मतलब है, दोस्तों की वजह से मुझे प्यार हुआ। हकीकत वाला प्यार, जो मेरे लिए सब कुछ था। दोस्तों ने ही मुझे प्यार को निभाना सिखाया, और रही बात 'आहिस्ता ' की, प्यार की बातें जितनी धीरे से हो, वह उतना ही बढ़िया है। वो कहते हैं ना - “दिखावे की मोहब्बत शोर करती है जनाब, सच्चा इश्क तो आँखों ही आँखों में हो जाता है” तो ‘आहिस्ता’ भी आहिस्ता से मुझे मोहब्बत का पाठ पढ़ा गई। वैसे तो कहानी शुरू हुई आपसी शर्त की वजह से। शर्त लगी थी, की मुझपर रिया चिल्लायेगी। पर ऐसा हुआ नहीं, उसे मुझसे बात करना अच्छा लगता है। मैं ठहरा गाँव के मध्य - मध्यवर्गीय परिवार से, जहाँ रिश्तों की कीमत ज्यादा होती है। हम अपनी बात के लिए जान भी देने को तैयार होते हैं। हम अपनी मोहब्बत के लिए कुछ भी कर सकते हैं। पर रिया ठहरी शहर की लड़की, जो नए ख्यालों की है, पर उसे माँ बाप की इज़्ज़त सबसे ज्यादा प्यारी है। वो अपने प्यार को भी भुला सकती है। उसने हमेशा ध्यान रखा कि कहीं उसकी वजह से उसके माँ बाप को दुःख न हो। मेरे तो सारे दोस्त मेरी ही तरह थे, थोड़ा पागल। पर कभी किसी का दिल नहीं दुखाया, कभी किसी का विश्वास नही तोडा। रिया से मेरी बात अक्सर होने लगती है, एक बार तो उसने ये भी कहा, कि तुम्हारे दोस्त मुझे बहुत परेशान करते हैं। पर मैंने भी कहा कि इतने भी खराब नहीं हैं मेरे दोस्त। जो किसी की फीलिंग्स को ठेस पहुंचाएं। एक बार रिया मुझसे नाराज हो गई उसने बोला- “I don't want to talk you” मैं कई दिनों तक उससे बात नहीं की। मेरा उससे बात न करना, उसको बुरा लगता है। वह मुझसे बात करती है, माफ़ी भी मांगी। कहा की मुझे नही पता था की तुम्हे इतना बुरा लगेगा। कई बार हम देर रात तक बात करते करते सो भी जाते थे । एक बार मैंने उसको ठंडा तेल का फ्राई चावल खिला दिया । हुआ यूँ की तेल खत्म हो गया था, अतुल ने कहीं से व्यवस्था की, पर ठंडा तेल की बोतल मे सरसों का तेल था, जिसकी वजह से ठंडा तेल का स्वाद आ रहा था। कई बार गर्ल्स हास्टल मे मेरा फ़ोन पकड़ा गया, हद तो तब हुई जब दो ने एक साथ मेरा नाम बताया, रिया ने मुझे सब कुछ फोन करके बताया। अब हम मोहब्बत मैं इतना आगे आ गए थे कि रिया को भी मुझसे प्यार होने लगा था। हम कई बार रात को मिले, पर हमारे बीच एक दीवार का फासला था। रिया ने मुझसे कई बार कहा कि ले चलो मुझे यहाँ से, मुझे घुटन होने लगी है यहाँ। पर मैं कुछ भी नहीं कर सकता था। आखिरकार उसे प्रपोज करने का दिन भी आ ही गया , तो दोस्तों के साथ मिलकर एक प्लान बनाया। उसी दिन उसने मुझे एक लेटर भी दिया, जिसको पढ़ने के बाद मैंने कॉल किया और उससे मिला। जब वो सामने आई तो उसे गले से लगा लिया, और आहिस्ता से बोला - ‘आई लव यू’

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बचपन से ही मुझे जो चहिये होता था, वो मुझे मिल जाता था। पर कहीं न कहीं ये लगता था कि सब कुछ मिलेगा, जो में चाहता हूँ। वैसे तो मै एक मध्यवर्गी परिवार से हूँ। जहाँ हमेशा जरुरत ही पहले पूरी होती है, शौक नहीं। मुझे नवोदय विद्यालय में पढ़ने का मौका मिला। जहाँ मैंने 2010 से लेकर 2017 तक पढाई की। जहाँ मुझे कुछ खास दोस्त मिले, जिनके साथ उम्र भर की दोस्ती। हमने अपनी जिंदगी के बेहतरीन पल वहाँ बिताए। पाबंदियों में रह कर भी खुद को हीरे की तरह निखारा। मेरा लिखने की वजह भी नवोदय ही है। कुछ हसीं पल मिले कुछ हसीं जज्बात, और जिंदगी जीने का सबक। मैं कोई टोपर नहीं हूँ, या यूँ कहें तो मी बैक बेंचेर था, लास्ट सीट पर कब्ज़ा किये हुए था| पढ़ने के साथ खेल में भी कुछ सिखा दिया, टेबल टेनिस, हॉकी, वॉली बॉल और भी कई खेल| साइंस प्रोजेक्ट भी ले जाने का मौका मिला| NCSE (नेशनल चिल्ड्रन एंड साइंस कांग्रेस) -2015 में नवोदय विद्यालय साइंस एक्सहिबिशन 2016 में मुझे जाने का मौका मिला| (2nd stage) सबकी तरह मेरा भी सपना था इंजीनियरिंग का…… 2017 मई JEE MAINS में असफलता के बाद , फिर से उठ खड़ा हुआ। 2018 में JEE MAINS के पेपर में सफल हो गया, पर रैंक इतनी ज्यादा थी, की कोई कालेज एड्मिसन तो दूर अंदर तक ना जाने देता। पर थोड़ी और मशक्कत की JEE एडवांस में बेहतरीन तरीके से ऊपर आया, साथ ही UPTU की भी परीक्षा दी थी। इस में जनरल रैंक 1569 आई। सब बहुत खुश हुए मेरी इस सफलता को लेकर। मुझे भी खुशी थी, खैर इंजीनियरिंग में एड्मिसन लेने के बाद मुझे लगा कि लिखना भी चाहिए। इलाहाबाद में ही रह कर पढाई करने क विचार पहले से ही मन में बना लिया था। नवोदय का इतना कर्ज है की शायद कभी इससे उभार भी न पाऊँ। ये उपन्यास नवोदय के नाम। ‌‌‌‌- शिवाकान्त कुशवाहा

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