धार्मिक मनुष्य के लिए यह प्रतिज्ञा ईश्वर से होती है लेकिन नास्तिक मनुष्य के लिए यह प्रतिज्ञा खुद से होती है।
इसके परिणाम क्या है? यह इसका विचार कैसे आता है, वह पवित्र कुरान में इसका क्या भूमिका है इसको थोड़ा प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है।
कृपया इसे पढ़ें और लाभ उठाएं , यदि आपके पास कोई अधिक जानकारी हो तो अवगत करायें ।
धन्यवाद
आपका- अब्दुल वहीद बाराबंकी उत्तर प्रदेश भारत (इंडिया)
मेरा नाम अब्दुल वहीद है मेरे पिता का नाम स्वर्गीय हाजी उबैदुर्रहमान है व माता का नाम जैबुन्निसा है । मैंने बचपन से ही वैज्ञानिक विचारधारा को पसंद किया है और शांत स्वभाव व पुस्तकों से लगाव रहा है । जिससे मेरी रोज जिज्ञासा रुचि निरंतर नए - नए खोजो को जानकारी में प्रयुक्त रहा है । मैं BSc करते समय पालीटेक्निक में सेलेक्शन हो गया था , लेकिन दुर्भाग्यवश अधूरा रह गया था क्योंकि पिता और भाई का सर्वगवास हो गया था ।
मेरे पिता जी की दो बातें जो , मेरे जीवन के लिए अत्यंत अनमोल है -
प्रथम - इमानदारी से कमाओ झूठ का सहारा मत लो ,
दूसरा अन्न की इज्जत करो और जितना खाना हो उतना ही लो ।
इसलिए घर की जिम्मेदारी , फिर बाद में विवाह हो जाने के कारण शिक्षा अधूरी रह गई । फिर भी हिम्मत नहीं हारा और आज आपके सामने मेरे विचारों के रूप में पुस्तक उपलब्ध है । यदि कोई जानकारी अधूरी रह गई हो तो कृपया जरूर अवगत कराये ।
धन्यवाद ।
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