शालिनी गोविल का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ शहर में हुआ था। उन्होंने अपनी पहली कविता, 11 साल की उम्र में स्कूल के लिए लिखी थी। उन्होंने अपनी तालीम अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पूरी करी, जहाँ उन्होंने अपनी शायरी के सफर को भी आगे बढ़ाया। पेशे से इंजीनियर, दिल से शायर, वो खुद के लिए लिखती हैं: लोग कहते हैं मैं ज़िंदा हूँ, ना जाने मैं कौन हूँ, क्या हूँ। कोई अधूरी ख्वाहिश या अनसुनी दुआ हूँ, या किसी महफ़िल की बुझती शमा हूँ। कोई गुमनाम ग़ज़ल या दर्द-ए-दास्ताँ हूँ, कोई खामोश लहर या ख़ाक-ए-सबा हूँ। कल तक थी सबके ज़हन में, अब ना जाने कहाँ हूँ खुद से दूर, मैं ग़मगीन गुमशुदा हूँ। ना किसी की रक़ीब ना मैं आशना हूँ, बस अब तलक मैं यूँ ही बेज़ुबान हूँ। ना मैं हिन्दू, ना मैं मुसलमां हूँ, खुदा की खुदाई मैं फ़क़त एक इंसान हूँ।