Aurat Uttarkatha

· Rajkamal Prakashan
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लगभग सात-आठ वर्ष पहले ( १९९४ हठ ने 'औरत : उत्तरकथा' नाम से विशेषांक का आयोजन किया था । बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में लगने लगा था कि समाज और साहित्य में औरत की कथा अब वह नहीं रह गई है जो सौ-डेढ़ सौ सालों से कही जाती रही है, क्योंकि उसे 'हम' कहते रहे हैं- 'उसकी' ओर से । हमारे सामने कुछ सवाल थे जो समस्याओं के रूप में रेखांकित किए जा रहे थे, और हम उनके हल उन्हीं बँधे हुए सींचों में थोड़ी फेर-बदल के साथ तलाश रहे थे । लोकतांत्रिक खुलावों ने अब तक अनसुनी आवाजों को साहित्य में 'मित्रो मरजानी' (कृष्णा सोबती), 'आपका बंटी' मन भण्डारी), 'रुकोगी नहीं राधिका' (उषा प्रियंवदा) और 'बेघर' (ममता कालिया) के रूप में सबका ध्यान दूसरे पक्षों की ओर खींचना शुरू कर दिया था । लगा कि हमारे सवालों के उत्तर तो यहाँ से आ रहे हैं । इधर मैत्रेयी पुष्पा की 'चाक' और 'कस्तुरी कुंडल बसै' आदि किताबों को भी इस कड़ी में जोड़ा जा सकता है । पिछली सदी का अन्तिम दशक लगभग स्त्री और दलित-विमर्श के उभार का दशक रहा है । हंस उस पर बात न करे, यह साहित्य और समय के साथ विश्वासघात होगा और यह ऋणशोध किया गया 'औरत : उत्तरकथा' के रूप में. .. इधर यह विशेषांक शुरू से ही अनुपलब्ध हो गया था । आखिर कब तक इसकी फोटो प्रतिलिपियाँ दी जाती रहें-इसी दबाव में तय किया गया कि अब इसे पुस्तकाकार आना चाहिए.. .कुछ रचनाएँ छोड्‌कर अब यह आपके सामने है । भूमिका से

About the author

जन्म : 28 अगस्त, 1929, आगरा। शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), 1951, आगरा विश्वविद्यालय। प्रकाशित पुस्तकें : देवताओं की मूर्तियाँ, खेल-खिलौने, जहाँ लक्ष्मी कैद है, अभिमन्यु की आत्महत्या, छोटे-छोटे ताजमहल, किनारे से किनारे तक, टूटना, ढोल और अपने पार, चौखटे तोड़ते त्रिकोण, वहाँ तक पहुँचने की दौड़, अनदेखे अनजाने पुल, हासिल और अन्य कहानियाँ, श्रेष्ठ कहानियाँ, प्रतिनिधि कहानियाँ (कहानी-संग्रह); सारा आकाश, उखड़े हुए लोग, शह और मात, एक इंच मुस्कान (मन्नू भंडारी के साथ), मंत्र-विद्ध और कुलटा (उपन्यास); आवाज तेरी है (कविता-संग्रह); कहानी : स्वरूप और संवेदना, प्रेमचन्द की विरासत, अठारह उपन्यास, काँटे की बात (बारह खंड), कहानी : अनुभव और अभिव्यक्ति, उपन्यास : स्वरूप और संवेदना (समीक्षा-निबन्ध-विमर्श); वे देवता नहीं हैं, एक दुनिया : समानान्तर, कथा जगत की बागी मुस्लिम औरतें, वक्त है एक ब्रेक का, औरत : उत्तरकथा, पितृसत्ता के नए रूप, पच्चीस बरस : पच्चीस कहानियाँ, मुबारक पहला कदम (सम्पादन); औरों के बहाने (व्यक्ति-चित्र); मुड़-मुडक़े देखता हूँ... (आत्मकथा); राजेन्द्र यादव रचनावली (15 खंड)। प्रेमचन्द द्वारा स्थापित कथा-मासिक ‘हंस’ के अगस्त, 1986 से 27 अक्टूबर, 2013 तक सम्पादन। चेखव, तुर्गनेव, कामू आदि लेखकों की कई कालजयी कृतियों का अनुवाद। निधन : 28 अक्टूबर, 2013

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