Bhasha Aur Samaj

· Rajkamal Prakashan
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ଏହି ଇବୁକ୍ ବିଷୟରେ

भाषा और समाज सरीखे अत्यन्त गहन विषय पर डॉ. रामविलास शर्मा का यह एक महत्त्वपूर्ण मौलिक गं्रथ है। इसमें सामाजिक विकास के संदर्भ में भाषा के विकास का अध्ययन करते हुए भाषाशास्त्र और समाजशास्त्र की अनेक मान्यताओं का गहन विद्वत्ता के साथ खंडन-मंडन किया गया है। सैद्धांतिक विवेचन के अलावा इसमें भाषा-संबंधी अनेक व्यावहारिक समस्याओं का भी विवेचन है। उदाहरण के लिए, भारत की राजभाषा और राष्ट्रभाषा की समस्या, अहिंदीभाषी प्रदेशों में असंतोष के कारण, क्या भारत की सभी भाषाएँ राजभाषा बनेंगी ? क्या अंग्रेजी विश्वभाषा है और उसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता ? - आदि प्रश्नों पर भी इसमें प्रकाश डाला गया है। यह पुस्तक न केवल भाषाविज्ञान का शास्त्रीय अध्ययन करनेवालों के लिए, बल्कि उन पाठकों के लिए भी उपयोगी है, जो इन समस्याओं में गहरी दिलचस्पी रखते हैं।

ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ ଓ ସମୀକ୍ଷା

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ଲେଖକଙ୍କ ବିଷୟରେ

डॉ रामविलास शर्मा 10 अक्तूबर सन् 1912 को ग्राम ऊँचगाँव सानी, जिला-उन्नाव (उत्तर प्रदेश) में जन्मे रामविलास शर्मा ने 1932 में बी.ए., 1934 में एम.ए. (अंग्रेजी), 1938 में पी. एच. डी. (लखनऊ विश्वविद्यालय) की उपाधि प्राप्त की ! लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में पाँच वर्ष तक अध्यापन-कार्य किया ! सन 1943 से 1971 तक आगरा के बलवंत राजपूत कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष रहे ! बाद में आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुरोध पर के.एम. हिन्दी विद्यापीठ के निदेशक का कार्यभार स्वीकार किया और 1974 में अवकाश लिया। सन 1949 से 1953 तक रामविलासजी अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के महामंत्री रहे ! देशभक्ति तथा मार्क्सवादी चेतना रामविलास जी की आलोचना की केन्द्र-बिन्दु है। उनकी लेखनी से वाल्मीकि तथा कालिदास से लेकर मुक्तिबोध तक की रचनाओं का मूल्यांकन प्रगतिवादी चेतना के आधार हुआ। उन्हें न केवल प्रगति-विरोधी हिन्दी-आलोचना की कला एवं साहित्य-विषयक भ्रान्तियों के निवारण का श्रेय है, वरन् स्वयं प्रगतिवादी आलोचना द्वारा उत्पन्न अन्तर्विरोधों के उन्मूलन का गौरव भी प्राप्त है। साहित्य अकादेमी का पुरस्कार तथा हिन्दी अकादेमी, दिल्ली का शताब्दी सम्मान से सम्मानित। देहावसान: 30 मई, 2000।

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