Chubhate Shabd

Sankalp Publication
E-Book
110
Seiten

Über dieses E-Book

: भारतेन्दु हरिश्चन्द की प्रसिद्व कृति ‘अन्धेर नगरी’ तत्कालीन सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था पर एक करारा व्यंग्य था। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने शोषकों का विरोध और शोषितों की पक्षधरता करने के लिए व्यंग्य को शैली के रूप में इस्तेमाल किया था । उनकी ‘कुकुरमुत्ता’ कृति में व्यंग्य का पैनापन दिखाई पड़ता है । निराला शोषक एवं पूँजीपति वर्ग का विरोध करते हुए प्रतीकात्मक रूप में लिखते र्हैं अबे! सुन बे गुलाब भूल मत जो तूने पाई खुशबू रंगोआब। खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट डाल पर इठला रहा कैपिटलिस्ट। धूमिल की ‘संसद से सड़क तक’ की कविताएँ मुक्तिबोध की काव्यकृति ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ की कविता ‘अँधेरे में’ एवं दुष्यंत कुमार की गज़लों में व्यंग्य एक विधा बनने के साथ-साथ व्यवस्था बदलाव का एक असरदार माध्यम भी बन जाता है। हरिशंकर परसाई की कृतियाँ -विकलांग श्रद्धा का दौर, सदाचार की ताबीज, भूत के पाँव पीछे, ठिठुरता हुआ गणतंत्र और मध्यमवर्गीय कुत्ता प्रमुख कृतियों में है। हिंदी साहित्य के साहित्यकारो द्वारा किसी जाति या धर्म के मान्यताओं पर नही बल्कि व्याप्त कुरीतियों और भेदभाव को व्यंग्य के माध्यम से प्रकाश में लाते हुए सच का आईना दिखाने का प्रयास किया गया है सामाजिक एवं राजनीतिक विसंगतियों पर चोट कर के उनमें बदलाव लाने की पहल की है। इसी कड़ी में आज जब व्यक्ति,सम्प्रदाय, ,समाज, देश और राजनीति में भेदभाव, तिरस्कार,भ्रष्टाचार, विसंगतियॉं, और मूल्यहीनता विद्यमान है । और वे इतनी मुखरता से बेशर्म हो गई है कि उससे मानवता और सभ्य समाज आहत हो रहा है। तब इन पर चोट एवं इनका विरोध व्यंग्य द्वारा ही कारगर रूप से हो सकेगा। क्योंकि व्यंग्य ‘जो गलत है’ उस पर तल्ख चोट तो करता ही है ‘जो सही होना चाहिए’ इस सत्य की ओर इशारा भी करता है। अतः "चुभते शब्द" में जन्मा व्यंग्य आज उन्हें आईना दिखाने की सशक्त माध्यम बन गया है। "चुभते शब्द" व्यंग्य का मूल्य भी इसी में है कि वह हमारी कमजोरियों और सामयिक अपेक्षाओं से हमें अवगत कराए। पतित मनोवृत्तियों का विरोध करें और भ्रष्टाचार के विरूद्ध रचनात्मक विचार दें।

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