Rajasthan's Four Century Old Satire : Ekalgidh Dadhale ri Vaat: राजस्थान का चार सौ वर्ष पुराना हास्य-व्यंग्य : एकलगिढ दाढाळै री वात

Shubhda Prakashan
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About this ebook

यह चार सौ वर्ष पुरानी राजस्थानी हास्य-व्यंग्य रचना है। आबू पर्वत पर रहने वाले बड़े दांतों वाले सूअर दाढाला तथा उसकी पत्नी भूंडण, अपने पांच बच्चों को जौ एवं गन्नों के खेतों में चराने के लिए सिरोही राज्य के खेतों में प्रवेश करते हैं। उस समय सिरोही का राजा रनिवास में होता है। इसलिए उसे सूचना नहीं दी जा सकती। अतः ठाकुर अपनी सेना लेकर सूअरों पर आक्रमण करते हैं किंतु वीर दाढाला एवं उसकी वीरपत्नी भंूडण ठाकुरों की सेना को तहस-नहस कर डालते हैं। जब राजा रनिवास से बाहर आता है तो सेना लेकर सूअरों पर चढ़ाई करता है। घनघोर युद्ध के बाद दाढाला मारा जाता है। राजा मृतकों की चिता जलाता है तथा घायलों का उपचार करवाता है। इसके बाद राजकुमार सेना लेकर भूण्डण के पीछे जाता है एवं उसके चार बच्चों को मार डालता है। भूंडण अपने एक बच्चे को कुल की परम्परा का निर्वहन करने का उपदेश देकर पति की चिता में जलकर सती हो जाती है। इसके बाद दाढाला एवं भूण्डण श्रापमुक्त होकर यक्ष बन जाते हैं। राजा उन दोनों के वीरत्व एवं सत्यनिष्ठा की प्रशंसा करता है। इस कथा में चार सौ साल पहले राजपूताना में निवास करने वाले समाज की विशेषताओं, परम्पराओं एवं मान्यताओं का बहुत अच्छा वर्णन हुआ है। हास्य-व्यंग्य एवं साहित्यक गांभीर्य से ओत-प्रोत इस रचना का मूल रचनाकार अज्ञात है। आप इसे एक बार पढ़ना आरम्भ करेंगे तो समाप्त करके ही उठ पायेंगे।

Ratings and reviews

5.0
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shyam singh Deora
April 13, 2015
जिका लोग राजस्थान रौ वास्तविक साहित प्ढ़नो चावै, वांरे वास्ते आ एक अनमोल किताब है। हमें एैड़ी रचनावां लिखीजैई कोनी। गुप्ताजी ने इण काम सारूं घणौ-घणौ रंग।
Dipti Tayal
April 12, 2015
आज कॉमिक्स के नाम पर जो लिखा जा रहा है, वह केवल कबाड़ा है। एकलगिढ डाढाला में वह सब पढ़ने को मिलता है जो एक मैच्योर रीडर को हल्का-फल्का टाइप का चाहिए। इसे पढ़कर टाइम खराब होने जैसा नहीं लगता। मजा भी आता है और अपने राजस्थान के बारे में जानने को भी मिलता है। चार सौ साल पहले के लोगों का जीवन कैसा था। वे कैसे व्यवहार करते थे, चापलूसी, वीरता और युद्ध के तरीकों को बताने वाला यह बेमिसाल व्यंग्य है। आज की युवा पीढ़ी के लिए ऐसा साहित्य पढ़ने को मिलता ही नहीं है। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने इसका सम्पादन करके अनूठे साहित्य को फिर से जीवित किया है।

About the author

डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से अब तक पांच दर्जन से अधिक पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं।

डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं।

इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं।

डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है।

राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया।

प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।

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