श्री रामचन्द्रजी के अनन्य सेवक और दूत पवनपुत्र हनुमानजी का सम्पूर्ण जीवन अनुशासनबद्ध और सुव्यवस्थित है। वे ‘मानस’ के ऐसे पात्र हैं, जो अपनी सेवा-भावना और भक्ति से, वानर से महामानव और फिर देवता तक की यात्रा करते हैं। निरालस कर्मयोगी हनुमानजी में ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की त्रिवेणी का पावन संगम है। उनमें श्रद्धा है, समर्पण है और अपनी शक्तियों पर प्रबल आत्मविश्वास है। वे मानी, अमानी और मानदा हैं। उनमें अतुलित बल होते हुए भी वे कभी अपनी शक्ति का अतिक्रमण नहीं करते हैं। वे अपने बल से सज्जनों की सर्वविध रक्षा करते हैं और उसी से दुष्टों का संहार करते हैं, उन्हें दण्ड देते हैं। वे त्यागी हैं, तपस्वी हैं और व्रती हैं, वे जगत में ‘संकटमोचन’ नाम से प्रसिद्ध हैं। वे संकटों का वीरता से सामना करते हैं और गीता के ‘न दैन्यम्, न पलायनम्’ जैसे सूक्त वाक्य में विश्वास करते हैं। दूरदर्शी और नीतिज्ञ हनुमानजी गुणग्राहक और परोपकारी परदुःखकातर हैं। ये तो उनके कतिपय गुण हैं, परन्तु वास्तव में वे गुणों के आगार और गुणातीत हैं। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर उनकी अद्भुत पकड़ और पहुँच है। वे जीवन-प्रबन्धन में अत्यन्त कुशल हैं; इसीलिए वे अतुलनीय और वन्दनीय हैं।