Gagan Ghata Ghahrani: Bestseller Book by Manmohan Pathak: Gagan Ghata Ghahrani

· Prabhat Prakashan
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बिहार में सामंती अवशेषों के लक्षणों से युक्त शक्तियाँ जहाँजहाँ घृणित रूप में सक्रिय हैं, उनमें पलामू का नाम शायद सबसे ऊपर है। इन शक्तियों की गिरफ्त में आदिवासी ही नहीं, सदान भी हैं। इस उपन्यास की प्रेरणाभूमि पलामू और उसके आसपास के वे तमाम क्षेत्र हैं, जहाँ लंबे समय से आजादी की लड़ाई चल रही है। इस लड़ाई का इतिहास मुगलकाल से आरंभ होकर ब्रिटिश गुलामी को पार करता हुआ भारत की 45 साल की स्वतंत्रता तक खिंचा चला आया है। इसके नेताओं में अनेक शहीद हुए हैं, अनेकों के पाँव फिसले हैं और कुछ ने साफ तौर पर दगा दी है। कई बार बाहर के लोगों ने अपने सिद्धांतों के प्रयोग के लिए यहाँ के गाँवों, जंगलों, पहाड़ों और निवासियों का उपयोग किया है। लेखक की श्रद्धा उन सबके प्रति है, जिन्होंने अपनीअपनी तरह से उन्हें मुक्त कराने की कोशिश में थोड़ा भी योगदान दिया है।

प्रस्तुत उपन्यास को लिखने के पूर्व और प्रक्रिया में उनके योगदान पर बारबार निगाह गई है। उनके अनुभवों के दौर से, जय और पराजय की अनुभूतियों से गुजरकर उपन्यास में उन्हें स्थान दिया है।

बिहार की सामंतशाही के विरुद्ध चल रही लड़ाई को प्रखरता से उजागर कर सोचने पर विवश कर देने वाला एक पठनीय उपन्यास।

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Apie autorių

जन्म : 4 फरवरी, 1947 को (झारखंड) पलामू के झरी गाँव में। शिक्षा : राँची विश्वविद्यालय से एम.ए. (स्वर्ण पदक के साथ)। कृतित्व : ‘संभावना’, ‘पुटुस’ एवं झारखंड की सांस्कृतिक पत्रिका ‘शालपत्र’ का संपादन। सातवें दशक में सृजनकर्म की शुरुआत कविता से। विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में कविता एवं कहानियाँ प्रकाशित। ‘गगन घटा घहरानी’ एकमात्र प्रकाशित उपन्यास। झारखंड के औद्योगीकरण एवं वहाँ के मूल निवासियों की संघर्षगाथा पर केंद्रित अपने दो उपन्यासों के सृजन में संलग्न। संप्रति : कोल इंडिया लिमिटेड के विभिन्न पदों पर काम करते हुए अवकाश प्राप्त।

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