जो कविताएँ यहाँ पाठकों के लिए चुनी गयी हैं उनमें कुछ कील की तरह सख़्त और नुकीली हैं, तो कुछ लम्बी हैं जिन्होंने ख़ुद में इन्सानी संघर्ष की कहानियों को समेटा हुआ है। कविताओं के सिवाय ज़िन्दगी कहीं भी इतने संक्षिप्त और सम्पूर्ण तरीके से भाषा में नहीं बँधती। इसलिए कविताओं का अनुवाद तब और भी मुश्किल हो जाता है जब वे किसी ऐसी ज़मीन पर उपजी हों जहाँ की हक़ीक़तें उस ज़मीन से तक़रीबन पूरी तरह से अलग हों जहाँ की भाषा में अनुवाद हो रहा हो। नमिता खरे और संजीव कौशल ने इस चुनौती का सामना किया है और ऑस्ट्रिया की जर्मन भाषी कविताओं को हिन्दी में अनूदित किया है। इस संकलन में नयी और पुरानी कविताएँ हैं, मगर इनमें से हरेक हमें छूती है और कुछ कविताएँ तो हमें पूरी तरह से झकझोर देती हैं क्योंकि वे ऐसी सच्चाई दिखाती हैं जो पूरी दुनिया में रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बनी हुई है। यह संकलन हमें एक ऐसे सफ़र पर ले जाता है जो ऑस्ट्रिया में शुरू होता है और हिन्दुस्तान के रास्ते हमारे दिलों में अपनी पैठ बना लेता है।