Ham Bihar Ke Bachche Hain - Arvind Pandey: हम बिहार के बच्चे हैं - अरविन्द पाण्डेय

· Bihar Bhakti Andolan
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 बिहार के बच्चों में और बिहार के युवाओं में आत्म-स्वाभिमान की पुष्टि और आत्म-सम्मान के प्रगल्भन के लिए इन गीतों का अरविन्द पाण्डेय द्वारा सृजन वर्ष 2003 में तब किया गया था जब बिहार के प्रति सम्पूर्ण देश में एक नकारात्मक भाव का विस्तार कुछ शक्तियों  द्वारा आशय-पूर्वक किया जा रहा था.                         इन गीतों के सृजन के बाद इनकी गेयता को  अक्षुण्ण रखने और उसे व्यवस्थित रूप देने हेतु इनकी रिकार्डिंग कराई गयी और वीनस म्युज़िक कंपनी ने इन गीतों का कैसेट्स और सी.डी. भी वर्ष 2003 में प्रस्तुत किया था.

                 वीनस द्वारा रिकार्ड कराए गए ये गीत संगीतबद्ध रूप में सम्प्रति Youtube  पर उपलब्ध हैं.


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अरविन्द पाण्डेय  - 

लेखक की अब तक चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं :

1. स्वप्न और यथार्थ -  कविताओं, लेखों गीतों का संग्रह.

2. हम आपके हैं दोस्त - पुलिसिंग में नए प्रयोगों से सम्बंधित मार्गदर्शिका.

3. हम बिहार के बच्चे हैं - बिहार के बच्चों को  समर्पित गीतों का संग्रह .

4. सशक्तीकरण - मानव-व्यापार निरोध, किशोर न्याय , अत्याचार निवारण, स्त्री अपराध निवारण हेतु विधिक हस्तक्षेप.

लेखक द्वारा गाए गए गीतों का संग्रह वीनस और टी सिरीज द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं और '' बंधन टूटे ना '' तथा '' धरती कहे पुकार के '' दो भोजपुरी फिल्मों में इन्होने अभिनय भी किया है  जिसमें इनके साथ श्री अजय देवगन और श्री मनोज तिवारी ने भी अभिनय किया है. 

उत्तर प्रदेश के विन्ध्याचल नामक प्रसिद्ध  महाशक्ति पीठ में जन्म लेकर, प्रारम्भिक शिक्षा वहीं लेने के बाद, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत (दर्शन समूह ) में स्नातकोत्तर की उपाधि ली.

        स्नातक में संस्कृत और दर्शन के साथ अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया.  इंटर के छात्र के रूप में  मन में प्रबल इच्छा हुई थी कि स्वामी विवेकानंद की तरह संन्यासी बनें किन्तु, वासनाएं शेष थीं और ऐसा हो न सका.

       1988 में भारतीय पुलिस सेवा ( Indian Police Service ) के लिए  चयनित  हुए . तब से भगवान बुद्ध के महान बिहार की सेवा में व्यस्त हैं.

        लेखक का प्रयास है कि  हिन्दी कविता-प्रेमी उस स्वर्ण-युग की स्मृतियों से आनंदित हों जब हिदी कविता, विश्व की समस्त भाषाओं और साहित्य की गंगोत्री अर्थात  संस्कृत-कविता से अनुप्राणित और अनुसिंचित होती हुई , अपने स्वर्ण-शिखर पर विराजमान होकर रस - धारा प्रवाहित कर रही थी
अब तक साहित्यकार , साहित्य के स्वरुप की व्याख्या करते आए हैं मगर समस्या यह है कि साहित्य के वर्त्तमान स्वरुप को बदला कैसे जाय ..
         हिंदी-साहित्य में  छायावादी दृश्य-परिवर्तन के बाद पश्चिम के अपरिपक्व सामाजिक और साहित्यिक दर्शन का नक़ल करने वालों ने हिन्दी-साहित्य को एक निरुद्देश्य शाब्दिक धंधा बना कर रख दिया ..
        अब आगे की ओर सकारात्मक-गति आवश्यक है क्योंकि कविता ही आज के युग की सर्वाधिक शक्तिमती मुक्ति-दात्री है.

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