जीवन भर हम दूसरों के साथ कैसे रहें; यह सीखते हैं; लेकिन स्वयं को भूल जाते हैं। जबकि अपने प्रथम मित्र तो हम स्वयं हैं। यदि हम अपने साथ सुख एवं खुशी से नहीं रह सकते हैं तो जीवन का क्या अर्थ है? हमारी उपलब्धियाँ एवं जीतने का क्या अर्थ है? स्वयं को खोकर कुछ भी पा लें तो बेकार है। इस ‘स्वयं’ को सुव्यवस्थित करने की कला का नाम जीवन प्रबंधन है।
प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान् लेखक द्वारा कहानी; तर्क; शोध; व्यक्तिगत अनुभव एवं उदाहरण द्वारा जीवन जीने के सूत्र बताए गए हैं। हो सकता है; जीवन जीने के इन सूत्रों; विधियों; तरीकों या उपायों से आप पहले से ही अवगत हों; फिर भी आप इनकी शक्ति को कम न समझें। ये वे उपाय हैं; जो आपको जीवन जीने की कला सिखा सकते हैं। मार्ग पर चलना प्रारंभ करेंगे; आगे बढ़ेंगे; तभी लक्ष्य को प्राप्त कर पाएँगे।
जीवन प्रबंधन और जीवन कैसे जिएँ—को विस्तार से बताती है यह लोकोपयोगी पुस्तक।