गिरिराजशरण अग्रवाल जी ने दो- तीन बातों का विशेष ध्यान रखा है। एक तो वक्ता के रूप में वे प्रायः बच्चे को ही सामने लाए हैं, दूसरे भाषा को कहीं भी बोझिल नहीं बनने दिया है और तीसरे लय और गेयता को पूरी तरह सँजोया है। अभिव्यक्ति- कौशल की दृष्टि से कहीं-कहीं आलस की बहती नदिया जैसे मनभावन चित्र भी मिल जाएँगे।
-दिविक रमेश