Log Bhool Gaye Hain

· Rajkamal Prakashan
Llibre electrònic
104
Pàgines

Sobre aquest llibre

रघुवीर सहाय की कविताओं में हम एक ऐसे आधुनिक मानस को देख पाते हैं जो बौद्धिक और रागात्मक अनुभूतियों से सन्तुष्ट होकर अपने लिए एक सुरक्षित संसार की सृष्टि नहीं कर लेता % उसमें रहने लगना कवि के लिए एक भयावह कल्पना है । आज के पतनशील समाज में ऐसे अनेक सुरक्षित संसार विविध कार्य–क्षेत्रों में बन गए हैंµसाहित्य में भी और इनमें बूड़ जाने का खतरा पिछले बीस वर्षों में बढ़ता–बढ़ता तीव्रतम हो गया है । परन्तु (बातचीत में रघुवीर सहाय कहते हैं कि) समाज कविताओं से भरा पड़ा है % सड़क पर चलते ही हम उनसे टकराएँगे और हर कविता एक नया परिचय कराएगी । इस संग्रह की रचनाएँ कवि के निरन्तर बढ़ते हुए परिचयों के पीछे उसकी सामाजिक चेतना के विकास का भी संकेत देती हैं % कवि की चिन्ता है कि उस विकास के बिना कविता लिखते जाने का कोई मतलब ही नहीं होगा । आज के पतनशील समाज के प्रति कवि की दृष्टि विरोध की है परन्तु वह अपने काव्यानुभव से जानता है कि वह रचना जो पाठक के मन में पतन का विकल्प जाग्रत् नहीं करती, न साहित्य की उपलब्धि होती है न समाज की । ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ की परम्परा में वह उस शक्ति को बचा रखने को आतुर है जो उसने ‘दूसरा सप्तक’ और ‘सीढ़ियों पर धूप में’ पाई थी और जिस पर आए हुए खतरे को उसने ‘हँसो हँसो जल्दी हँसो’ में दिखाया था । वह मानता है कि यही खोज नए समाज में न्याय और बराबरी की सच्ची लोकतन्त्रीय समझ और आकांक्षा जगाती है और ऐसे समाज की रचना के लिए साहित्यिक और साहित्येतर क्षेत्रों में संघर्ष का आधार बनती है । जहाँ कहीं जन की यह शक्ति पतनोन्मुख संस्कृति के माध्यमों द्वारा भ्रष्ट की जा रही हो वहाँ वह चेतावनी देता है और जहाँ वह

Sobre l'autor

जन्म: 9 दिसम्बर, 1929, लखनऊ। शिक्षा: लखनऊ विश्वविद्यालय से 1951 में अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.। समाचार जगत में ‘नवजीवन’ (लखनऊ) से आरम्भ करके पहले समाचार विभाग, आकाशवाणी, नई दिल्ली में और फिर ‘नवभारत टाइम्स’ नई दिल्ली में विशेष संवाददाता और अनंतर 1979 से 1982 तक ‘दिनमान’ समाचार साप्ताहिक के प्रधान सम्पादक रहे। उसके बाद अपने अन्तिम दिनों तक स्वतंत्र लेखन करते रहे। 1988 में भारतीय प्रेस परिषद के सदस्य मनोनीत। साहित्य के क्षेत्र में प्रतीक (दिल्ली), कल्पना (हैदराबाद) और वाक् (दिल्ली) के सम्पादक-मंडल में रहे। कविताएँ दूसरा सप्तक (1951), सीढ़ियों पर धूप में (1960), आत्महत्या के विरुद्ध (1967), हँसो, हँसो जल्दी हँसो (1975), लोग भूल गए हैं (1982) और कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ (1989) में संकलित हैं। कहानियाँ सीढ़ियों पर धूप में, रास्ता इधर से है (1972) और जो आदमी हम बना रहे हैं (1983) में और निबंध सीढ़ियों पर धूप में, दिल्ली मेरा परदेस (1976), लिखने का कारण (1978), ऊबे हुए सुखी और वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे (1983) में उपलब्ध हैं। इसके अलावा कई नाटकों और उपन्यासों के अनुवाद भी किए हैं। सम्पूर्ण रचनाकर्म रघुवीर सहाय रचनावली में प्रस्तुत है। ‘लोग भूल गए हैं’ को 1984 का राष्ट्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। मरणोपरांत हंगरी के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान, बिहार सरकार के राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान और आचार्य नरेन्द्रदेव सम्मान से उन्हें सम्मानित किया गया। देहान्त: 30 दिसम्बर, 1990

Puntua aquest llibre electrònic

Dona'ns la teva opinió.

Informació de lectura

Telèfons intel·ligents i tauletes
Instal·la l'aplicació Google Play Llibres per a Android i per a iPad i iPhone. Aquesta aplicació se sincronitza automàticament amb el compte i et permet llegir llibres en línia o sense connexió a qualsevol lloc.
Ordinadors portàtils i ordinadors de taula
Pots escoltar els audiollibres que has comprat a Google Play amb el navegador web de l'ordinador.
Lectors de llibres electrònics i altres dispositius
Per llegir en dispositius de tinta electrònica, com ara lectors de llibres electrònics Kobo, hauràs de baixar un fitxer i transferir-lo al dispositiu. Segueix les instruccions detallades del Centre d'ajuda per transferir els fitxers a lectors de llibres electrònics compatibles.