Lutian Ke Tile Ka Bhugol

· Rajkamal Prakashan
3,0
2 umsagnir
Rafbók
368
Síður

Um þessa rafbók

‘लुटियन के टीले का भूगोल’ में प्रभाष जोशी के वे लेख संकलित किए गए हैं जिनके केन्द्र में हैं राजनीतिक दल और उनसे जुड़े राजनीतिज्ञ तथा लोकतन्त्र को कायम रखनेवाली संस्थाएँ। इसके अलावा ऐसे लेख भी हैं जो समाज और समुदाय के समकालीन प्रसंगों का विवेचन करते हैं और अपने समय की राजनीति से भी जुड़ते हैं। प्रभाष जोशी अपनी भूमिका में लिखते हैं: ”‘लुटियन के टीले का भूगोल’ में ऐसे कागद हैं जो मैंने राजनीति पर कारे किए। नई दिल्ली में जहाँ केन्द्र सरकार बैठकर काम करती है- वह लुटियंस हिल कहलाती है। वहाँ अंग्रेज राजधानी लाए, उसके पहले रायसीना गाँव था और जिस पर अंग्रेजों ने अपनी सरकार के बैठने के लिए भवन बनवाए, वह रायसीना की पहाड़ी कही जाती थी। लुटियन उस वास्तुशास्त्री का नाम था जिसने रायसीना पहाड़ी पर वायसराय की लॉज (जो अब राष्ट्रपति भवन है) नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक और उसके नीचे एसेम्बली (जो अब संसद भवन है) बनवाए। बाद में यह पूरा परिसर लुटियंस हिल कहलाने लगा। उज्जैन के विक्रम के टीले की तर्ज पर इसे मैंने लुटियन का टीला बना लिया- दोनों का अन्तर्विरोध और विडम्बना दिखाने के लिए। आज की राजनीति और सत्ता का केन्द्र यह लुटियन का टीला है। लेकिन ये मेरे राजनीति पर लिखे लेख नहीं हैं। वे मैंने जनसत्ता के सम्पादकीय पेज पर लिखे और यहाँ संकलित नहीं हैं। ‘कागद कारे’ में राजनीति के मानवीय और निजी पहलुओं को खोलने की कोशिश करता हूँ। इनमें उन दस सालों की सभी राजनीतिक घटनाओं और उनके नायक-नायिकाओं के मानवीय और निजी पक्षों को समझने की कोशिश की गई है। नरसिंह राव, सोनिया गांधी, चन्द्रशेखर, विश्वनाथ प्रताप सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी, मायावती आदि राजनीतिक व्यक्तित्वों को महज राजनीति के नजरिए से नहीं देखा गया है। इनमें वे पहलू खोजे गए हैं जिनके बिना राजनीति नहीं होती। राजनीति के बिना लोकतन्त्र नहीं हो सकता।“

Einkunnir og umsagnir

3,0
2 umsagnir

Um höfundinn

प्रभाष जोशी 15 जुलाई, 1937 को मध्यप्रदेश में सिहोर जिले के आष्टा गाँव में पैदा हुए। शिक्षा इंदौर के महाराजा शिवा जी राव मिडिल स्कूल और हाई स्कूल में हुई। होल्कर कॉलेज, गुजराती कॉलेज और क्रिश्चियन कॉलेज में पहले गणित और विज्ञान पढ़े। देवास के सुनवानी महाकाल में ग्राम सेवा और अध्यापन किया। पत्रकारिता को समाज परिवर्तन का माध्यम मानकर सन् 60 में ‘नई दुनिया’ में काम शुरू किया। राजेन्द्र माथुर, शरद जोशी और राहुल बारपुते के साथ काम किया। यहीं विनोबा की पहली नगर यात्रा की रिपोर्टिंग की। 1966 में शरद जोशी के साथ भोपाल से दैनिक ‘मध्यप्रदेश’ निकाला। 1968 में दिल्ली आकर राष्ट्रीय गांधी समिति में प्रकाशन की जिम्मेदारी ली। 1972 में चम्बल और बुंदेलखंड के डाकुओं के समर्पण के लिए जयप्रकाश नारायण के साथ काम किया। अहिंसा के इस प्रयोग पर अनुपम मिश्र और श्रवण कुमार गर्ग के साथ पुस्तक लिखी - चम्बल की बन्दूकें, गांधी के चरणों में। 1974 में ‘प्रजानीति’ (साप्ताहिक) और ‘आस पास’ निकाली जो इमरजेंसी में बन्द हो गई। जनवरी ’78 से अप्रैल 81 तक चंडीगढ़ में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ का सम्पादन किया। फिर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ (दिल्ली संस्करण) के दो साल तक सम्पादक रहे। सन् 83 में प्रभाष जोशी के सम्पादन में ‘जनसत्ता’ का प्रकाशन हुआ। प्रभाष जोशी की पुस्तक मसि कागद और हिन्दू होने का धर्म भी है। 5 नवम्बर, 2009 को दिल्ली में निधन हुआ।

Upplýsingar um lestur

Snjallsímar og spjaldtölvur
Settu upp forritið Google Play Books fyrir Android og iPad/iPhone. Það samstillist sjálfkrafa við reikninginn þinn og gerir þér kleift að lesa með eða án nettengingar hvar sem þú ert.
Fartölvur og tölvur
Hægt er að hlusta á hljóðbækur sem keyptar eru í Google Play í vafranum í tölvunni.
Lesbretti og önnur tæki
Til að lesa af lesbrettum eins og Kobo-lesbrettum þarftu að hlaða niður skrá og flytja hana yfir í tækið þitt. Fylgdu nákvæmum leiðbeiningum hjálparmiðstöðvar til að flytja skrár yfir í studd lesbretti.