MADHYARATRICHE PADGHAM

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
৪.৩
২৮টি রিভিউ
ই-বুক
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পৃষ্ঠা

এই ই-বুকের বিষয়ে

‘तुम्ही पाहिलं असेल बघा त्यांना. ते हो - गुळगुळीत टक्कल. अगदी तुळतुळीत काळ्या गोट्यासारखा चेहरा! पोपटाच्या चोचीसारखं नाक! आणि डोळे... अगदी रोखून पाहणारे डोळे! मला तर त्यांच्या डोळयांची भीतीच वाटते......त्या दिवशी, रात्रीची गोष्ट. मी डॅडींच्या जवळ झोपलो होतो आणि एकदम मला जाग आली. सगळं घर हादरत होतं. झांजा वाजत होत्या. कोणीतरी पडघमवर ‘धम धम’ वाजवत होतं. त्याच ‘धम धम धम’ तालात सगळं घर हलत होतं. मग सगळं एकाएकी थांबलं. एक ‘गूंऽऽ’ असा भुंग्यासारखा आवाज यायला लागला. मग पुन्हा ‘धम धम’ वाजायला लागलं. मला फारच भीती वाटायला लागली. तेव्हा मी डॅडींना हलवून उठवायला लागलो... आणि एकदम लक्षात आलं: मी कुणाला हलवतोय? बिछान्यात आहेच कोण? बिछाना रिकामा - डॅडी जवळ नाहीतच. मी एकटाच! काळोख... आणि ‘धम धम’ वाजतंय. मी भयंकर घाबरून किंकाळी फोडली...’ ओळखीच्या - बिनओळखीच्या वातावरणांमध्ये उमटणारी अकल्पित भयाची ही वलये... गारठून टाकणारी... काल्पनिक असूनही अतिशय खरीखुरी. कदाचित कधीच प्रत्यक्ष न अनुभवलेली... तरीही मनात खोल कुठेतरी दडून बसलेली भीती... तिचे पडघम वाजू लागतील या कथा वाचताना. तो आवाज कान देऊन ऐका... तुमच्या मनात आजवर सीलबंद करून ठेवलेल्या त्या भीतीचा निचरा झाल्याशिवाय राहणार नाही. आपणच मनात दडवून ठेवलेल्या गूढाशी, अत्यंत तरलपणे आपली ओळख करून देणाऱ्या, एका श्रेष्ठ कथाकाराच्या, मंत्रमुग्ध करणाऱ्या कथांचा हा संग्रह. 

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