मन ही मानव के बंधन और मोक्ष का कारण है, अगर मन विषयासक्त हो तो बंधनकारी है और निर्विषय हो तो मुक्ति।
हमारे धर्मग्रंथों के उपरोक्त तीनों सूत्र ही इस पुस्तक के प्रकाशन के असली आधार हैं, जिसमें ‘मन एव मनुष्याणां की मिमांसा मैंने परम श्रद्धेय ओशो के एक प्रवचन मे सुनी थी, जबकि रामायण की उपर्युक्त दोनों चौपाइयों को बचपन से ही सुनते और गाते थे, किंतु उसके अर्थ को हम तब समझ पाए, जब जीवन के कई अर्थों का हमने अनर्थ कर दिया था। सच में देखें तो हम में और पशुओं में सिर्फ मन का ही अंतर है। मन ही हमें पशुता या जड़ता की निचाई और परमात्मा की ऊँचाई तक ले जाता है।
इस पुस्तक की शैली काव्यात्मक है, पर जीवन के चारों पड़ावों, जैसे—ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास तथा जीवन के चारों पुरुषार्थ यथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लिए इसमें रोचक, मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक बातें कही गई हैं।
सच कहूँ तो इस पुस्तक में संकलन के अलावा मेरा कुछ भी नहीं है, जो कुछ भी मैं अपने बड़ों से जान पाया या इस समाज से ग्रहण कर सका, उसे सिर्फ सँजोकर आप सबके लिए पठनीय बनाकर अपने अनुभव के हिसाब से पेश कर रहा हूँ कि आप सब इसे कम-से-कम एक बार अवश्य पढ़ेंगे।
इसकी शैली काव्यात्मक होने के कारण गेय भी है, और मुझे पूरा विश्वास है कि यदि आप इसे एक बार पढ़ेंगे तो गुनगुनाएँगे और गुनगुनाएँगे तो अपने आचरण में जरूर लाएँगे और यदि आपने ऐसा किया तो यह पुस्तक आप सबके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन अवश्य लाएगी एवं यही इस पुस्तक की सबसे बड़ी सार्थकता होगी।