Swarna Kalash: Bestseller Book by Manoj Das: Swarna Kalash

· Prabhat Prakashan
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स्वर्ण कलश

विश्व कथा साहित्य के सर्वाधिक चर्चित भारतीय साहित्यकारों में शुमार होनेवाले श्री मनोज दास को प्राचीन पृष्ठभूमि से आधुनिक समाज के तारों को पिरोकर प्रस्तुत करने में अद्भुत महारत हासिल है। ‘स्वर्ण कलश’ नामक उनका यह कथा-संग्रह ऐसे ही विशेष चरित्रों से बुना हुआ है। इस संग्रह में परी-कथा, पुरातन-कथा और लोक-कथाओं में व्यवहृत शैली को अपने सृजन-शिल्प का अवलंबन देकर इन कहानियों के मार्फत वास्तविक जीवन और मनस्तत्त्व की कई सूक्ष्म समस्याओं व पहेलियों का वर्णन किया है। इन कहानियों की विशेषता है कि इनमें से कई मानव-जीवन की समस्याओं और समाधान की दिशा में दिग्दर्शन का काम करती हैं।

पंचतंत्र, कथा-सरित्सागर और जातक कथाओं में से कुछ कहानियों को चुनकर श्री मनोज दास ने अपनी भाषा और शिल्प देकर नया रूप दे दिया है। ये कहानियाँ अपने मूल स्रोत में जिस बिंदु पर खत्म होती हैं, लेखक ने उसी बिंदु से आगे बढ़ते हुए उसके परवर्ती विकास या परिणाम में अपनी कहानी को विस्तार देकर खत्म किया है। भारत के प्राचीन कथा-साहित्य के कालातीत प्रभाव का यह एक अद्भुत प्रस्तुतीकरण तो है ही, उसके सार्वकालिक संदेशों का उज्ज्वल दृष्टांत भी है।

रोचक, रोमांचक, प्रेरक और पठनीय कहानियों का ‘स्वर्ण कलश’।

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About the author

उड़ीसा के एक समुद्रतटीय गाँव में सन् 1934 में जनमे मनोज दास ग्राम्य लोक और प्राकृतिक वैभव के बीच पले-बढ़े। शहर में पढ़ाई के दौरान अनायास लेखन की ओर प्रवृत्त हुए और उडि़या में पहला कविता संग्रह ‘शताब्दीर आर्तनाद’ प्रकाशित हुआ, तब इनकी उम्र मात्र चौदह वर्ष थी। पंद्रह वर्ष की अवस्था में ‘दिगंत’ की शुरुआत की, जो आगे चलकर राज्य की एक विशिष्‍ट पत्रिका के रूप में प्रतिष्‍ठित हुई। अंग्रेजी में लगभग 40 पुस्तकें प्रकाशित हैं तथा इतनी ही पुस्तकें मातृभाषा उडि़या में भी। उपन्यास ‘साइक्लोंस’, ‘श्रीअरविंदो इन द फर्स्ट डिकेड ऑफ द सेंचुरी’ एवं ‘श्रीअरविंदो’ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनके अलावा बाल साहित्य की विपुल मात्रा में रचना की है। दैनिक समाचार-पत्रों में नियमित रूप से स्तंभ-लेखन भी करते रहे हैं। सृजनात्मक लेखन के लिए भारत के राष्‍ट्रीय पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, उडि़या साहित्य अकादेमी पुरस्कार (दो बार) सहित अन्य अनेक पुरस्कार-सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है। भारत के राष्‍ट्रपति ने इन्हें ‘पद्मश्री’ अलंकरण से विभूषित किया; प्रतिष्‍ठित ‘सरस्वती सम्मान’ के साथ-साथ साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता से भी सम्मानित किए गए।

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