‘मां का आंचल', ‘जागो बच्चो', ‘शहीद के आँसू', ‘मृत्यु में प्राण' आदि कविताओं की उद्देश्यपरक व मार्मिक प्रस्तुति हमें भावुकता की पराकाष्ठा पर पहुँचाते हुए भारतीय संस्कृति के मूल-मंत्र ‘जननीजन्मभूमिश्चस्वर्गादपिगरीयसी’ की याद दिलाती है।
इस काव्य-संग्रह की अनुपम माला में अनेक खूबसूरत पुष्प खिलते हैं और अपना सुगंध फैलाते हैं। कहीं प्रेम के दीप जगमगाते हैं तो कहीं विरहाग्नि की तपिश तड़पाती है। कहीं देश की सामाजिक-प्रशासनिक विद्रूपताओं पर कुठाराघात होता है तो कहीं सोशल साइट्स के प्रति अत्यधिक आसक्ति पर तंज़ कसता है। पर्यावरण के निरंतर होते महाविनाश से आसन्न खतरे ‘बरगद का कत्ल’ में दृष्टिगोचर होते हैं तो ‘प्रेम-धर्म’ कविता में सामाजिक समरसता सुंदर तरीके से अभिव्यक्त होती है।
अंत में, ‘एक ही मंज़िल’ शीर्षक कविता भावना और बुद्धि के बीच स्पष्ट विभाजक-रेखा खींचते हुए परस्पर प्रेम-भावना को तरजीह देने का आगाज़ करती है। कुल मिलाकर यह काव्य-संग्रह पाठकों के दिलों को गुदगुदाने व झकझोरने दोनों में सफल हुआ है।
सम्प्रति, भगवान बिरसा मुंडा की पावन धरती, झारखंड की राजधानी, राँची के निवासी, श्री मनोज कुमार झा की प्राथमिक शिक्षा बिहार राज्य के लखीसराय जिले के उनके पैतृक गांव लय में हुई। उन्होंने पब्लिक हाई स्कूल सूर्यगढ़ा से 1984 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् टीएनबी कॉलेज भागलपुर से 1990 में स्नातक की डिग्री हासिल की। स्वतंत्र छात्र के रूप में उन्होंने 2002 में विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग से स्नातकोत्तर की परीक्षा पास की।
1993 में भारतीय जीवन बीमा निगम, जमशेदपुर मंडल के अन्तर्गत खलारी शाखा में विकास अधिकारी के पद पर योगदान करके वे आज भी निगम को अपनी बहुमूल्य सेवा दे रहे हैं। साथ ही, वे विकास अधिकारियों के अखिल भारतीय महासंघ के जमशेदपुर मंडल के अध्यक्ष की भूमिका में भी सेवारत हैं।
श्री झा की साहित्यिक अभिरुचि स्कूल के दिनों से ही झलकने लगी थी। उनके वक्तृत्व-कौशल व समाज-सेवा की भावनाओं ने हमेशा सुर्खियाँ बटोरीं। विकास अधिकारी के रूप में बीमा-विपणन गतिविधियों में व्यस्त रहने के बावजूद अध्ययन व लेखन के प्रति उनके लगाव व समर्पण की सुन्दर परिणति उनकी इस इक्यावन कविताओं की श्रृंखला से युक्त सुरुचिपूर्ण काव्य-संग्रह ‘निनाद’ के रूप में हुई है।