Panchava Mausam

Sankalp Publication
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 भूमिका कोई भी रचना समय का दस्तावेज होती है। किसी भी कवि को पहले ढंग से पढ़ा जाना चाहिए, उसे समझा जाना चाहिए, फिर उसे गुणना चाहिए. कोई भी रचनाकार चाहे वह नया हो या पुराना अपनी रचनाओं में खुद के समय को जीता है, जीने का ढंग सबके अलग- अलग हो सकते हैं लेकिन वह जीता है खुद के समय को ही और रचनाएँ भी वही सफल मानी जाती हैं जो उस समय की राजनीति, संस्कृति, सामाजिक उथल- पुथल, दुख- दर्द, खुशी, प्यार- मुहब्बत, प्रकृति, मेहनतकश मजदूर और किसान को संवेदनाओं के स्तर पर महसूसते हुए रचा गया हो. समय, समय- समय पर बदलते रहता है, साथ- साथ बदलते रहता है रचनाकार की समझ और संवेदना भी. खासकर एक कवि जब कोई कविता रचता है तो वह एक गहरी संवेदना को ही शब्द और स्वर देता है. इसलिए कोई कवि संवेदनाओं के स्तर पर जितनी ही अधिक गहराई में डूबेगा वह उतनी ही अच्छी कविता रच पायेगा, तत्कालिकता या क्षणिक आवेग में रची रचनाएँ ज्यादा टिकती नहीं हैं वह उस कच्चे घड़े की तरह होती हैं जो कि हल्की बारिश में ही ढह जाती हैं. रचनाएँ जितनी ही अधिक पकती हैं उतनी ही अधिक प्रभावशाली और टिकाऊ होती हैं. युवा कवि पंकज की कविताओं की दुनिया बहुत बड़ी है. इनकी दुनिया में एक ओर जहाँ प्रेम है वहीं दूसरी ओर मेहनतकश मजदूरों किसानों के दुख- दर्द भी है, एक तरफ जहाँ स्त्री की चिंता है तो दूसरी तरफ प्रकृति की भी चिंता है साथ ही आज की गिरती राजनीति पर भी पैनी नजर है, जब मैं इनकी कविताओं से गुजर रहा था तो एक साथ कई कविताओं ने मुझे आकर्षित किया. इनकी एक कविता " नदी और स्त्री "की कुछ पंक्तियों पर गौर कीजिए " रात के अंधेरे में सजने वाली मंडी में, हर स्त्री नदी बन जाती है/” यहाँ पर कवि की चिंता साफ है कि नदियों और स्त्रियों की स्थिति एक जैसी है, नदियाँ भी शहर की गंदगियों को ढोती हैं और मंडियों में बिकने वाली स्त्रियाँ भी, कवि दोनों को बचाना चाहते हैं, स्त्री हो या नदी दोनों का अंत होना एक सभ्यता का अंत होना है. कवि पंकज अपनी छोटी- छोटी कविताओं में बहुत बड़ी - बड़ी बातें बहुत आसानी से कह जाते हैं, इनकी कविताएँ अपने समय के ज्वलंत सवालों से टकराती रहती हैं.एक छोटी सी कविता है "हाथ", कवि इस कविता में मेहनतकश मजदूरों के बारे जब यह कहता है कि " कल उसका हाथ मैंने देखा था बेहद करीब से/ उसके हाथ में एक भी लकीर स्पष्ट नहीं थी /" मजदूरों के हाथ तो मेहनत करते- करते इतने घिस गये हैं कि हाथ की सारी रेखाएँ ही मिट गयी हैं, इसका साफ अर्थ है कि मजदूरों के हाथ में भाग्य की रेखाएँ हैं ही नहीं तो बचता है उनके लिए केवल कर्म, यहाँ पर कवि मजदूर के हाथ की मिटे रेखाओं के बहाने बहुत सारे प्रश्नों को एक साथ खड़ा करते हुए जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं. एक और कविता " खरीदार " में कवि पूंजीवादी व्यवस्था पर गंभीर चोट करते हुए लिखते हैं कि " डर लगता है, कहीं धरती, हवा, मिट्टी, वतन तक न बिक जाये /" वहीं एक और कविता "बाढ़ और कुर्सी" के बहाने कवि ने आज की व्यवस्था पर जबरदस्त व्यंग्य किया है " सबको पता है कुर्सी पर कभी किसी आपदा का असर नहीं होता है/" यहाँ पर कवि यह कहने में सफल हुआ है कि आपदा केवल आम जनता के लिए होता है कुर्सी के लिए वह एक अवसर होता है उस पर किसी आपदा का कोई असर नहीं होता है. नमक कवि का प्रिय विषय है "नमक" कविता में कवि कहते हैं कि "इंसान के लिए सबसे मुश्किल है नमक बनकर जीना/” नमक यहाँ कई अर्थों में है, ईमानदारी, नैतिकता, सभी जीवों के प्रति प्यार और संवेदनशील होना , कई अच्छी कविताओं में यह भी अच्छी कविता है. कोई भी कवि तभी पूर्ण होता है जब उसके पास खूबसूरत प्रेम कविताएँ हो, इस विषय पर भी कवि ने निराश नहीं किया है बल्कि प्रेम को बिल्कुल एक अलग ढंग से समझा है अलग ढंग से परिभाषित किया है . "प्यार का महीना" कविता में जब कवि यह कहते हैं कि " मुझे नहीं पता प्यार का महीना कब आता है " तो कवि सच्चाई ही बयान करता है प्यार का भी भला कोई खास महीना होता है, प्यार जब होना होता है तो हो जाता है वह किसी खास दिन या महीना का इंतजार थोड़े करता है.एक और कविता "मोहब्बत का सबूत" में कवि कहते हैं कि " अगर सच में मोहब्बत साबित करने की चीज है तो माफ करना प्रिय मैं मोहब्बत नहीं कर सकता " कवि यहाँ सीधे उस मोहब्बत को मोहब्बत नहीं मानते हैं जिन्हें साबित करना पड़े. एक कविता जो इस संकलन में है उसे पढ़ने के बाद लगा कि प्रेम पर इससे खूबसूरत कविता और क्या हो सकती है, इस कविता में कवि ने प्रेम को बहुत ही सरल सहज ढंग से बिल्कुल नये अंदाज में प्रस्तुत किया है, कविता का शीर्षक है " प्रेम प्रस्ताव " लोगों ने प्रेम में तरह-तरह के वादे किये/ किसी ने फूल, किसी ने दिल, किसी ने चांद तारे की बात की, मैंने उससे कुछ नहीं कहा केवल उसके माथे की टोकरी को उतार कर रख लिया अपने माथे पर / और उसकी सूखी रोटी पर मल दिया थोड़ा नमक/ प्रेम पर यह कविता एक अलग स्वाद की तरह है. कवि पंकज अभी युवा हैं, उनके पास चीजों को देखने, सुनने और समझने की संवेदनशील दृष्टि हैं, यदि इसी तरह ये अपनी संवेदनाओं को आगे भी जागृत रखने में सफल रह पाये तो अभी और बहुत अच्छी- अच्छी रचनाएँ पढ़ने सुनने को मिलेगी. मेरी शुभकामनाएं. चन्द्रकांत राय पूर्णिया ( बिहार )

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A szerzőről

परिचय नाम-पंकज कुमार सिंह। पिता का नाम-श्री प्रताप नारायण सिंह माता का नाम- श्रीमती रत्ना देवी जन्म तिथि-- 04 जनवरी 1990 स्थाई पता- ग्राम- गोपालपुर पोस्ट- परिहारी थाना- रानीगंज जिला- अररिया(बिहार) पिन- 854334. सम्प्रति- रेलवे कर्मचारी, एन एफ रेलवे वर्तमान पता- रेलवे कॉलोनी, कानकी, जिला- उत्तर दिनाजपुर, पश्चिम बंगाल विधा- कविता और कहानी। साहित्यिक उपलब्धि- किस्सा कोताह, सामयिक कारवां, संवादिया एवं विभिन्न सोशल मीडिया मंचों पर लगातार रचनाएँ प्रकाशित। शुभारंभ और आत्म सृजन नामक दो साझा संकलनों में भी रचनाएँ प्रकाशित। शिक्षा- एम0ए0 (अंग्रेजी साहित्य) पत्राचार का पता- पंकज कुमार सिंह पटेल हाता, चीनी मील रोड, वार्ड-16, पोस्ट +थाना- बनमनखी, जिला- पूर्णिया, बिहार, पिन-854202. मोबाइल नम्बर- 7909062224 9534415016. ईमेल- pankajbabu0401@gmail.com.

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