Premchand Ki Lokpriya Kahaniyan: The Legacy of Premchand's Writing

· Prabhat Prakashan
4.3
26 reviews
Ebook
162
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About this ebook

दस-बारह रोज और बीत गए। दोपहर का समय था। बाबूजी खाना खा रहे थे। मैं मुन्नू के पाँवों में पीनस की पैजनियाँ बाँध रहा था। एक औरत घूँघट निकाले हुए आई और आँगन में खड़ी हो गई। उसके वस्‍‍त्र फटे हुए और मैले थे, पर गोरी सुंदर औरत थी। उसने मुझसे पूछा, ‘‘भैया, बहूजी कहाँ हैं?’’
मैंने उसके निकट जाकर मुँह देखते हुए कहा, ‘‘तुम कौन हो, क्या बेचती हो?’’
उपन्यास सम्राट् मुंशी पेमचंद के कथा साहित्य से चुनी हुई मार्मिक व हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह।
Premchand Ki Lokpriya Kahaniyan by Premchand: Explore the beauty of Indian literature with stories by writer Premchand! Get a glimpse into his influential characters and descriptions that have made him a fan favorite.

This book is a collection of beloved stories by the renowned author Premchand. In this book, readers can explore the works of one of India’s most influential writers and experience the beauty of his stories. With vivid descriptions and captivating characters, this book is a must-read for any fan of literature.
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Ratings and reviews

4.3
26 reviews
Komal Sandhu
June 6, 2024
Nice stories and good experience
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Sonu Rathour
December 19, 2022
excellent
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Neeraj Nishad
May 28, 2023
Ok
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About the author

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के निकट लमही गाँव में हुआ था। उनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवनयापन का अध्यापन से। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक बने। नौकरी के साथ ही पढ़ाई जारी रखी 1910 में इंटर पास किया और 1919 में बी.ए. पास करने के बाद स्कूलों के डिप्टी सब-इंस्पेक्टर बन गए।प्रेमचंद नाम से ‘बड़े घर की बेटी’ उनकी पहली कहानी ‘जमाना’ पत्रिका के दिसंबर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई। छह साल तक ‘माधुरी’ पत्रिका का संपादन किया; 1930 में बनारस से अपना मासिक पत्र ‘हंस’ शुरू किया और 1932 के आरंभ में ‘जागरण’ साप्‍ताहिक भी निकाला। उनकी कई कृतियों का अंगेजी, रूसी, जर्मन सहित अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। ‘गोदान’ उनकी कालजयी रचना है। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्‍‍ठों के लेख, संपादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि लिखे। लेकिन जो यश-प्रतिष्‍‍ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से मिली, वह अन्य विधाओं से नहीं। मरणोपरांत उनकी कहानियाँ मानसरोवर के कई खंडों में प्रकाशित हुई। स्मृतिशेष: 8 अक्‍तूबर, 1936, बनारस में।
Premchand Ki Lokpriya Kahaniyan by Premchand: Explore the beauty of Indian literature with stories by writer Premchand! Get a glimpse into his influential characters and descriptions that have made him a fan favorite.

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