भारतीय समाज में नारी का एक विशिष्ट व गौरवपूर्ण स्थान है। वह भोग्य नहीं है बल्कि पुरुष को भी शिक्षा देने योग्य चरित्र बरत सकती है। अगर वह अपने चरित्र और साधना में दृढ़ तथा उत्साही बन जाय तो अपने माता, पिता, पति, सास और श्वसुर की भी उद्धारक हो सकती है।